*मगर उड़ना सिखाते हैं(गीतिका)*
मगर उड़ना सिखाते हैं(गीतिका)
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(1)
हमेशा से यही है रस्म जो हम सब निभाते हैं
कमाते हैं यहीं पर सब, यहीं पर छोड़ जाते हैं
(2)
उन्हें मालूम है उड़कर कभी वापस नहीं आते
परिंदे अपने बच्चों को मगर उड़ना सिखाते हैं
(3)
समय का इससे ज्यादा और सद्उपयोग क्या
होगा
चलो कुछ वक्त बूढ़ी मॉं के कदमों में बिताते
हैं
(4)
दौलत और शोहरत सिर्फ बातें चार दिन की हैं
कि जैसे रेत पर हम रेत ही के घर बनाते हैं
(5)
लगाकर ध्यान कुछ ऐसा ही मैं महसूस करता हूॅं
जैसे बच्चे खुद को माँ के आँचल में छुपाते हैं
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 9761 5451