मकसद
मकसद
इधर देखता हूं तुम दिखती हो मुझको
उधर देखता हूं तुम दिखती हो मुझको,
कहने को दुनिया में चेहरे हैं लाखों
हर चेहरे में बस तुम्हीं दिखती हो मुझको।
तुम्हारे मिलने से पहले मैं कुछ भी नही था
पहचान कुछ नही थी अस्तित्व कुछ नही था,
कहने को दुनिया में रहता था मैं भी
रहने का लेकिन कोई मकसद नही था।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्यप्रदेश)