मकर सक्रांति उत्सव
हमारे जीवन में पंच मूल तत्व
पृथ्वी
अग्नि
जल
वायु और आकाश तत्व जीवन में आधार हैं,
इनके अलावा नौ ग्रह वा पृथ्वी का एक उपग्रह चंद्रमा
खगोलीय पिंडों की स्थिति से जन्मी बारह राशियों में विभिन्न ग्रहों के स्थान के अनुरूप जीवनीय तत्वों पर असर और उनके परिणाम को ज्योतिष वा हस्तरेखाओं
पर संकेत एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को जन्म देते है.
संक्रांति वैसे तो सूर्य के अरग अलग समय में प्रवेश
चार संक्रांति को जन्म देते है.
वो चार राशियां है,
मेष
कर्क
तुला और मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश.
मकर संक्रांति का अपना विशेष महत्व है.
क्योंकि सूर्य दक्षिणायन से उतरायण गमन के साथ मकर राशि में प्रवेश करता है.
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कलावती कहानी की पात्र अनपढ़ है, को कुछ भी मालूम नहीं है.
मकर संक्रांति सूर्य कलेंडर के हिसाब से हर वर्ष जनवरी चौदह को मनाया जाता है.
वह सुबह जल्दी उठकर अपने नित्य-कर्म स्नानादि करके, लकडी जलाकर मूंगफली, गुड, तिल गजक, खांड के लड्डू आदि व्यंजन बनाती है.
जो स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से, स्वास्थ्य की रक्षा और शरीर में विभिन्न पोषक तत्वों से शरीर की रक्षा करते है
घृत कनक के आटे से चूरमा का निर्माण कर सबको बांटती है.
वह सुबह के लाल सूरज की धूप में बैठकर आनंद महसूस करती है.
गर्मी के मौसम में संचित दोष का निवारण कर रही हो
कलावती को जैसे वात,पित,कफ (त्रिदोष) मल,मूत्र,श्वेद (त्रिमल) और सात धात ( रस/आहार-रस, रक्त,मांस, मेद, अस्थि मज्जा शुक्र पर्यन्त ओजस्वी शारीर का पूरा ज्ञान हो,
कलावती के सास ससुर नशद देवर उनके क्रियान्वयन और उत्सव के व्यंजन और तौर तरीकों से काफी स्वस्थ और प्रसन्न रहते है.
भारत छ: ऋतुओं का वार्षिक समागम वाला भौगोलिक देश है.
मकर संक्रांति का उत्सव एक वैज्ञानिक आधार रखने वाला उत्सव है, यह उत्तर भारत के विशिष्ट उत्सवों में से एक है, जिस समय में व्यायाम शरीर शुद्धि विचार और कर्मशुद्धि का महत्व पर्व है.
जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करता है.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस