*मकर संक्रांति पर्व*
मकर संक्रांति पर्व”
मकर संक्रांति की ऐतिहासिक मान्यताएं –
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जातें हैं चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी है अतः इस दिन के पर्व का नाम मकर संक्रांति से ही जाना जाता है।
महाभारत काल में भी भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए इसी दिन याने मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था।मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिल गई थी।
मकर संक्रांति के दिन सुबह सबेरे उठकर गंगा नदी में स्नान करते हुए सूर्य देव को अर्द्ध दिया जाता है अगर गंगा नदी में जाना संभव नहीं हो तो घर पर ही गंगा जल , तिल डालकर स्नान करें।
सूर्य देव को जल देते हुए स्वस्थ निरोगी काया के लिए वरदान मांगे सभी देवी देवताओं की पूजन कर तिल गुड़ से बने लड्डू गजक ,खिचड़ी आदि भोज्य पदार्थ से भोग लगाएं।
इसके बाद मंदिर में दान पुण्य कर सभी लोगों में भी प्रसादी वितरण कर सुहागिनों को सुहाग सामान बांटकर एक दूसरे से संकल्प लें।
तिल गुड़ की मिठास की तरह से सभी जनों की वाणी में भी मिठास घुली रहें।
मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने का भी रिवाज है रंग बिरंगी सतरँगी पतंगबाजी आसमान में उड़ते हुए नजर आती है और यह नजारा अदभुत होता है।
खेतों में फसलें लहलहाती हुई दिखाई देती है सरसों की पीली फूलों से खलिहानों में ऐसा लगता है मानो धरती ने पीली चादर ओढ़े बसंती बयार सी दिखने लगती है।
चारों दिशाओं में बसंत पंचमी की कुछ छटाओं का नजारा देखने को मिलता है।
मकर संक्रांति के बाद फागुन माह की तैयारियों का मौसम झलकने लगता है।
मकर संक्रांति की दुआओं का असर बेइंतहा खुशियों को लेकर नव वर्ष के आगमन पर दस्तक दे दरवाजे पर खड़ा हुआ है …….! !
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं