मंत्र चंद्रहासोज्जलकारा, शार्दुल वरवाहना ।कात्यायनी शुंभदघां
मंत्र चंद्रहासोज्जलकारा, शार्दुल वरवाहना ।कात्यायनी शुंभदघांत देवी दानवघातनी ।।
( अर्थात चंद्रहास की भांति दैदीप्यमान शार्दुल (अर्थात शेर पर सवार) और दानवों का विनाश करने वाली माँ हम सबके लिए शुभ फलदायी है।)
8 अक्टूबर दिन मंगलवार को
नवरात्र के छठे दिन माॅं दुर्गा का षष्ठम स्वरूप माँ कात्यानी की पूजा की जाती है ।कात्यायनी सफलता और यश का प्रतीक है। स्कंद और वामन पुराणो में अलग-अलग बातें बताई गई है।
कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यान उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। इच्छा थी की माॅं भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म ले। माॅं भगवती ने उनकी है प्रार्थना स्वीकार कर ली थी।
वामन पुराण के अनुसार सभी देवताओं ने अपनी ऊर्जा को बाहर निकाल कर कात्यायन ऋषि के आश्रम में इकट्ठा किया और ऋषि ने उस शक्ति को एक देवी का रूप दिया इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाई। माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य, चमकीला और प्रकाश मान है । माँ कात्यायनी अमोघ फल दायिनी है। परंपरागत रूप से देवी दुर्गा की तरह यह लाल रंग से जुड़ी हुई है। इस दिन साधक का मन ‘आज्ञाचक्र’ में स्थित होता है। माँ कात्यायनी की पूजा गोधूलि बेला में करना श्रेष्ठ माना जाता है। माँ कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही इनकी पूजा से शीघ्र विवाह के योग ,मनचाहा जीवनसाथी मिलने का वरदान प्राप्त होता है। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने माता कात्यायनी की पूजा की थी। यह ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। माँ को सच्चे मन से याद करने पर साधक के रोग, शोक संताप ,भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। माँ कात्यायनी की पूजा प्रदोष काल अर्थात (गोधूलि बेला) में करना श्रेष्ठ माना जाता है। देवी कात्यायनी की पूजा में लाल रंग के कपड़ों का भी बहुत महत्व है ।इनकी पूजा में शहद का प्रयोग जरूर करना चाहिए, क्योंकि माँ को शहद बहुत प्रिय है। शहद युक्त पान का भोग भी देवी कात्यायनी को लगाए कुमकुम, अक्षत, फूल आदि सोलह श्रंगार माता को अर्पित करें, फिर जल अर्पित करें और घी का दीपक जलाकर माँ की आरती करें ,आरती से पहले दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तमी का पाठ करना ना भूले।
हरमिंदर कौर
अमरोहा (यूपी)