भ्रमित किसान अब
मनहरण घनाक्षरी८,८,८,७
पाप ताप बढ रहा, प्यार आज घट रहा,
कर रहे हैं वैर वो,प्यार को जगाइए।
नफरतों के बीज वो,नित रहे हैं आज बो,
रोशनी की एक लौ आज अब जलाइए।
चल रहा खेल अब,कांप रहा आज रब,
खत्म होगी राड़ कब,आप अब बताइए।
भ्रमित किसान अब,झूठ का विधान सब,
बातचीत कीजिए जी, जाम अब हटाइए।