भोर सुनहरी
कहां गई वो भोर सुनहरी
छुपी कहां सजीली शाम
शहर शहर पसरा सन्नाटा
बंद हुए हैं सारे काम
सूंने मंदिर सूंनी मस्जिद
सूंने गिरिजा गुरुद्वारे
सूंनी गलियां राजपथ सूंने
है बाजारों में अंधियारे
ठहर गया है पहिया जग का
चौपट सब के धंधे हैं
सहम गया मानव का जीवन
दहशत में सब बंदे हैं
कब होगी वो भोर सुहानी
कब होगी रंगीन वो शाम
गाड़ी कब तक दौड़ेगी
कब तक खुल पाएगा जाम
है कुदरत का कहर
या कर्मों का अभिशाप महान
सोच रहा हूं किस पर डालूं
संगीन जुर्म का ये इल्जाम