भोर की चहक
ऊषा नववधु
ओढ़े लालिमा की चूनर
टंका गोटा किरण
रवि रश्मियों का
जड़े हैं
नगीने ओस के
फैलाए आँचल सरिता रूपी
जिसका न ओर-छोर
सुर जल तरंगिणी का
करता कल-कल
ज्यों बाजे
नव वधु की रेशमी पायल
स्वरलहरी में
बाजे मधुर घंटियां
भोर की देवालय में
सुरभि फुलवारी की
महकाती
मानो वधू ऊषा का
कोमल तन
लो हो गयी भोर
चहक उठा शोर।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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