भेद अभेद
भेद अभेद भी अभेद्य है, नहीं जवाब सबका एक.
कोई शिखा रख चढ़ा, कोई मूंछ मुंडवा राह अनेक.
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सब कहे हम देश हितैषी, फिर देशद्रोही कौन.
मापदंड खुद धरे, बिन न्याय प्रणाली सब सून.
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खाने से फुर्सत नहीं, शरीर दिया सांठ,
कसरत किये नहीं, आंकड़े वही आठ.
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एक मनोरथ चाहिए, मंशा उज्ज्वल होय,
सत्कर्म पुरुषार्थ सेवा, सब फलीभूत होय
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संयोग बनाने पड़ते है,
लेना पडता संज्ञान,
ए खातिर कौन विधान.
अंत लोक श्मशान.