भेदभाव
हालांकि दीक्षा पढ़ने में काफी होशियार थी। इसके बावजूद अक्सर कुंठा उसके दिमाग पर हावी रहती थी। आए दिन अपने पापा से न जाने कितने सवाल किया करती थी। उसे यही महसूस होता था कि स्कूल में बच्चों के बीच भेदभाव किया जाता है। एक दिन फिर वही… रोजाना की तरह दीक्षा स्कूल से आई। उसने अपने पापा से पूछा- ”पापा नेहा को हर साल वजीफा मिलता है। पास होने पर उसको रुपये और साइकिल भी मिली थी। उसके नंबर हमेशा मुझसे कम आते हैं। आखिर यह भेदभाव क्यों होता है। उसे यह सब क्यों मिलता है…मुझे क्यों नहीं?” एक सांस में उस बच्ची ने कई सवाल खड़े कर दिए।
”बेटी दरअसल सरकार ने कुछ जातियों को पिछड़ा और दलित माना है। इसी आधार पर उन्हें आरक्षण और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। यह सरकारी नियम है, हम सबको इसका पालन करना ही पड़ेगा।” विकास ने अपनी बेटी की बात का जवाब देते हुए कहा। ”पापा! क्या सरकार जातिवाद, ऊंच-नीच के आधार पर भेदभाव करती है?” दीक्षा ने फिर सवाल दागा। ”नहीं बेटा! ऐसी बात नहीं है।” विकास ने बात को टालने की कोशिश की।
”पापा, नेहा के पापा के पास दो कारें है, बहुत बड़ी कोठी है, वह बहुत अच्छे-अच्छे कपड़े पहनती है, रोजाना खूब रुपए भी लाती है खर्च करने के लिए, उसके सामने हम तो गरीब ही ठहरे।” दीक्षा ने एक बार फिर अपनी बात को मजबूती के साथ रखा। ”बेटा बड़े होने के बाद इन सारी बातों के जवाब तुम्हें खुद ही मिल जाएंगे।” रोहित ने पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा। ”मुझे मालूम है पापा! आप भी जिस समाज का हिस्सा हो, उसमें पूरी तरह ढल चुके हो। समाज से इस (कु)प्रथा का अंत करने के लिए किसी को तो आगे आना ही होगा। मुझे बड़ा होने दो…मैं रोककर दिखाऊंगी इस (कु)प्रथा को।”
© अरशद रसूल