” भेड़ चाल कहूं या विडंबना “
” भेड़ चाल कहूं या विडंबना ”
मेरी घूमने की आदत और खेल टूर्नामेंट की वजह से दुनिया के काफी कोनों में घूमने का मौका मिला। विदेशी धरती से कहीं ज्यादा हमारे भारत में भेड़ चाल दिखाई देती है। विदेश में लोग खाली बैठकर समय व्यतीत करने की बजाय किसी न किसी काम में लगे रहते हैं। हमारे यहां तो हर आदमी खुद को भूलकर दूसरों का निरीक्षण करने में लगा रहता है। ऐसी ही कई घटना इस कहानी में मैं आपके साथ शेयर कर रही हूं :
# शाम के समय मेरा पूरा परिवार गली में घूमता था तो सामने फ्लैट की महिलाएं छुप छुप कर देखती रहती। हमें अजीब लगता तो हम सोचते कि ये चाहती क्या हैं। जब हम फ्लैट की साइड देखते तो वो दूसरी साइड मुंह फेर लेती थी।
# सुबह सुबह घर की छत पर कसरत करती तो सारे मौहल्ले की महिलाएं खिड़कियों में से झांकने लग जाती थी, जैसे मैं धरती से नहीं किसी दूसरे ग्रह से अभी उतर कर आई हूं।
# मेरी शुरू से ही गर्मियों में निक्कर पहनने की आदत है तो मैं हमेशा यही पहनती हूं। पड़ोस की वो महिलाएं जो साड़ी पहनती हैं, उन्होंने भी देखा देखी में ट्रक शूट और निक्कर पहनना शुरू कर दिया।
# जब मैं अपने पति के साथ गली में बैडमिंटन खेलती तो सारी महिलाएं बस इसी तक में रहती कि कब उनके पति ऑफिस से आएं और कब वो गली में उनके साथ बैडमिंटन खेलें।
# कई बार छत पर घूमते घूमते गलती से भी किसी के घर की तरफ नज़र चली जाती तो झट्टक कर खिड़की बंद कर लेते।
# मैं एक खिलाड़ी रही हूं तो बचपन से ही बॉयकॉट बाल रखे हैं। मेरे दो बच्चे हैं, जिनके साथ पार्क में घूमने जाते हैं। वहां बच्चे मम्मी मम्मी बोलते हैं तो सारे मौजूदा इंसान आंखे फाड़ फाड़ के मुझे घूरने लग जाते हैं।
# गली में सारे लड़के खेलते रहते। कोई भी लड़की गली में नही घूमती थी। हमें हमारी बेटी और बेटे दोनो को खेलने के लिए भेजना शुरू किया तो धीरे धीरे और लड़कियां भी गली में आने लगी। लेकिन हमारी बिटिया ने गली में खेलना बंद किया तो और लड़कियों ने भी बंद कर दिया।
# मौहल्ले के सभी आदमी गेट पर और कपड़े सुखाने के स्टैंड पर कपड़े सुखाते थे। हमने देशी स्टाइल में छत पर रस्सी बांधकर कपड़े सुखाए तो पड़ोसियों ने भी छत पर कपड़े सुखाना चालू कर दिया।
# उनको देखकर बस पुराना गाना याद आता है कि देख तेरे संसार की हालत कैसी हो गई है भगवान, अपने दुख से दुखी नहीं दुखी औरों के सुख से है इंसान।
# बहुत बार विदेशी हमारे भारत में घूमने आते हैं और बहुत बार हमारी घूर घूर कर देखने वाली आदत से परेशान हो जाते हैं। मीडिया और पुस्तकों में इस बारे में कई विदेशियों ने इसका जिक्र भी किया है।
# कुछ हद तक यह सही भी है, क्योंकि हम नया काम कम करना चाहते हैं तथा घिसे पिटे पुराने तरीकों से ही जिंदगी की गाड़ी चलाते रहते हैं।
Dr.Meenu Poonia