भूल
कप-कपाते हुए होठों
की एक फरियाद
जिसकी वजह से आज
सन्नाटे से भरी बस्ती
मै जो हम खड़े है अकेले
वो भूल आज भी याद है
लहज़ा जरा बुरा था
इसलिए तो सब बिगाड़ा था
कैसे बिगाड़ा था सब कुछ
हुयी थी एक भूल
वो भूल आज भी याद है
लाख़ चाहू फिर भी खुद
को बदल नही पता
कोशिस कितनी भी कर लूं
पर सच उससे कह नही पता
सच झूठ के फेर मे हुयी थी एक भूल
वो भूल आज भी याद है