” भाषाओँ का सम्मान “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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हमारे रगों मे
खून दौड़ने
लगता है
हम अपनी
मातृभाषा
को जंजीरों में
जकड़ा पाते हैं !!
हरेक वर्ष हम
प्रतीक्षा में रहते हैं !
कब ‘हिंदी दिवस ‘
आयेगाऔर हमें
फिर कब
मौका मिलेगा ?
जगह -जगह
अपनी नाटकीय
आक्रोश दिखायेंगे !
और अन्य भाषाओँ
को यदा -कदा
अछूत बताएँगे !!
विदेशों में हिंदी
भाषण से लोगों
को भारमायेंगे
पर अपने बच्चों
को इंग्लिश
ही सिखायेंगे !!
भारत की विभिन्य
भाषाएँ हम
सबके प्राण हैं
विश्व के भाषाओँ को
भी सीखना
सबका सम्मान है !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका