” भावना”
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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मन सदा निहार लेता है
प्रतिक्रिया स्वतःहोने लगती है
हम कभी मौनता के रूप को
अनायास धारणकरने लगते है
और बचते फिरते हैं !
उन अभिनय से
जोरंगमंच में करके दिखाना है ,
भय है दर्शकों से
कहीं आलोचनाओं की
माला गले में डाल ना दें ?
जब पहुँच गए रणक्षेत्र में
रणभेरियाँ बजने लगीं ,
फिर कहो कैसे रुके
कर्त्तव्य के जब हों धनी ?
भावना को रोक के
ज्वलंत विषयों को छोड़ के
कब तक हम विचरते रहेंगे
अपनी आँखों को मूंद के……… ?
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत