भारत माता की माटी
दुर्लभ है भारत की माटी, जन्म यहीं फिर पांऊं
नहीं किसी पर बोझ बनूं, मैं काम किसी के आऊं
दुर्लभ है भारत की माटी, जन्म यहीं फिर पाऊं
कभी न मान मर्यादा भूंलूं, नहीं स्वार्थ अंधता में झूलूं
धन दौलत बहुत कमाऊं, नहीं धरा पर बोझ बनूं
मैं काम किसी के आऊं
दुर्लभ है भारत की माटी, जन्म यहीं फिर पाऊं
नहीं जमीर किसी का तोड़ूं, न खुद ही मैं बिक जाऊं
अंतिम सांस तक स्वयं चलूं, मानवता रख पाऊं
दुर्लभ है भारत की माटी, जन्म यहीं फिर पाऊं
नहीं करूं मैं धरा प्रदूषित, जल जंगल सदा वचाऊं
सारा जीवन रहूं आदमी, प्रेम की गंगा सदा बहाऊं
दुर्लभ है भारत की माटी, जन्म यहीं फिर पाऊं