भानु चला उतरायण
विधा :-कविता
शीर्षक :- भानु चला उतरायण
रश्मियों के रथ पर हो के विराजित,भानु चला उत्तरायण ओर|
कंचन से बच्चों के कर कांच के कंचे पिल बनायें मचायें शोर|
भावों की पुण्य सरिता बहे उर में,आस्था की पतंग ले नभ हिलोर|
मुंह मिठा हो तिल गजक गुड़ से,घी तृप्त चूरमा बने खुशियों की कोर|
लख लख बधाइयाँ लोहडी़ की व अकूत मंगलकामनाओं कि टूटे नहीं ये कभी डोर|
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जीवन दान चारण अबोध