अजनवी
भले अजनवी थे कभी,
पर परिणय का विधान।
पति पत्नी संयोग यूं,
दो देही एक प्रान।
एक एक मिलकर दो बने,
यही गणित की रीत।
पति पत्नी दो हैं मगर,
एक होते कर प्रीत।
पत्नी है वरदान सी,
सब नर सुनो कर कान।
दारा जीवन डोर सी,
न करो कभी अपमान।
नारी बूढ़ी तब तक न,
उम्र हो चाहे कितनी।
पुरुष भी न कभी बूढ़ है,
जब तक जीवित पत्नी।
हंस जोड़े में कोई भी,
यदि कर गया पयान।
चहे उम्र हो तीस की,
निश्चय बूढ़ा जान।
वदन वृद्ध होना शुरू,
जब हो जाये वैधव्य।
हर तरफ तंगी सूनपन,
भले हो कितना द्रव्य।
सभी रहे सुख प्रेम से,
जीवन के दिन थोड़े।
प्रभु सब पर कृपा करें,
न बिछड़े कोई जोड़े।
सतीश सृजन