Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Mar 2022 · 6 min read

भरत कुल 7

भाग-7

हर्षा सुंदर व सुशील कन्या थी। वह अठारह वर्ष की थी। वह अपने परिवार के प्रति समर्पित, व्यवहार कुशल,व अनुभवी कन्या थी। प्रत्येक परिवार में होने वाली उठापटक, संस्कारों का टकराव उसने बखूबी देखा था। आस- पड़ोस में पड़ोसी भाभी- भैया के मधुर संबंधों में कटुता का अनुभव उसने किया था। घर में होने वाली झंझटों से वह कई बार दो-चार हो चुकी थी ।इतनी कम उम्र में वह अत्यधिक सहनशील, गंभीर व धार्मिक विचारों वाली हो गई थी। बड़ी मां और बाबा की अनवरत सेवा से उसे अत्यंत प्रसन्नता होती।

हर्षा खिड़की के सामने बैठकर अक्सर अखबार पढ़ती। कभी-कभी केश भी सँवारती थी। यौवन की इस दहलीज पर उसकी सुंदरता अप्रतिम थी। वह इस बात से अनभिज्ञ थी, कि कोई अनजाना व्यक्ति छुप छुप कर उसकी सुंदरता का रसपान कर रहा है। जब वह खिड़की पर खड़ी होती, वह व्यक्ति चुपके-चुपके उसे निहारता और भाँति- भाँति की कल्पना में खो जाता ।

उसे डर था यदि हर्षा के चाचा को भनक लगी कि उर्मिल, हर्षा को निहारता है ,तो बवाल मच जाएगा। हर्षा का चाचा बहुत लड़ाकू था ,और उर्मिल के पास साहस नहीं था, कि अपनी भावनाएं हर्षा से व्यक्त कर सकें। कभी-कभी वह बहुत साहस करके अपने हृदय की भावना व्यक्त करने की कोशिश करता, तो हृदय की धड़कन तेज हो जाती। भावनाओं और आशंकाओं के भंवर में फंसकर कर उसका प्यार एकतरफा हो गया था।

हर्षा ने अपनी सुंदर कल्पना में जिस राजकुमार को बसा रखा था, उसके आगे उर्मिल कहीं नहीं ठहरता था।

युवा स्वप्न कभी-कभी इतने युवा होते हैं, कि उन्हें वास्तविकता की कसौटी पर खरा उतरना कठिन होता है। यथार्थ बहुत नीरस व कुटिल होता है।

उर्मिल युवा था ,उसकी कल्पना की उड़ान ऊंची थी। किन्तु नींव खोखली थी। वह अभी शिक्षा ग्रहण कर रहा था। वह अपने पैरों पर कब खड़ा होगा निश्चित नहीं था। उसके माता-पिता ने साफ कह दिया था कि यदि अपने बूते बहू लेकर आ सकते हो ,तो आना ।बूढ़ा- बूढ़ी से कोई उम्मीद मत करना, कि वे तुम्हारी जीवन नैया पार लगा देंगे। अतः उर्मिल हर बार मन मसोस कर रह जाता, और नयनसुख लेकर ही संतोष का कर लेता। उसको संतोष था, कि उसका पहला प्यार उसके सामने रहता है। उसका मन हर्षा को बहुत चाहता था। हर्षा की कल्पना में खोया उर्मिल अपनी विवशता पर दुखी होता। उसका मन बार-बार रोने का करता ,किंतु वह अपने मन को यह कहकर समझाता, कि मर्द भी कभी रोते हैं ।आखिर स
उसने प्यार की अग्रिम सीढ़ी चढ़ने का प्रयत्न किया ।उसने श्वाँस को थामकर हर्षा का सामना करने की सोची। एक दिन जब हर्षा मंदिर से दर्शन करके अकेली घर लौट रही थी ,उसका पीछा उर्मिल दबे पैर कर रहा था ।अचानक गली के मोड़ पर दोनों आमने-सामने हुए ।हर्षा ने और उर्मिल को निकट पाकर शिष्टाचार वश नमस्कार किया। उर्मिल ने शिष्टाचार का उत्तर शिष्टाचार से दिया। वह कुछ कहना चाहता था, उसका गला फंस गया ।बड़ी कठिनाई से उसके मुंह से आवाज निकली- हर्षा जी !
हर्ष ने हैरानी से उसे देखा।उर्मिल की घबराहट बढ़ रही थी। उसने कहा हर्षा जी मैं आपके पड़ोस में रहता हूं। आप बहुत अच्छी हैं ।क्या हम मित्र बन सकते हैं ।

हर्षा हैरान थी, कि आज इस पड़ोसी में इतनी हिम्मत कहां से आ गई ।

उसने हंस कर कहा -कहो! क्या कहना चाहते हो मुझे जल्दी घर जाना है ।बाबा और अम्मा इंतजार कर रहे होंगे। उर्मिल ने केवल इतना कहा – क्या हम मित्रता निभा सकते हैं ।

हर्षा ने कहा- नहीं लड़के -लड़की कभी मित्र नहीं बन सकते। हमारे यहाँ इसे कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा। अतः आप कभी मिलने का प्रयास मत करना ।

उस दिन के बाद , उर्मिल के सामने की खिड़की बंद हो गयी। उर्मिल हर्षा के इंतजार में खिड़की के सामने घंटों खड़ा रहता ।आखिर निराश होकर उसने त्याग की भावना को अपनाया।

उसके लिए किसी लड़की के सम्मान से बढ़कर कुछ नहीं था। वह हर्षा को खुश देखना चाहता था। उसने समझदारी से काम लेते हुए भावनाओं के भंवर पर काबू पाया, और उसका प्रथम प्यार किसी योग्य व्यक्ति के हाँथो ही समर्पित होगा,यह सोचने लगा।

उर्मिल के प्यार की यह पराकाष्ठा थी। जब त्याग की भावना किसी को सुखी देखने की इच्छा से हो, तो यह प्रेम आनंदमय होता है, निस्वार्थ होता है।

उसने अपना समय योग्य व्यक्ति बनने में लगाना शुरू किया और अपनी शिक्षा और भविष्य पर ध्यान दिया।

इधर उर्मिल का प्यार दम तोड़ रहा था ,उधर हर्षा के विवाह की चर्चा जोर पकड़ रही थी।

बाबा और अम्मा ने एक सुंदर सुशील वर हर्षा हेतु चुन लिया था। आज लड़के के माता-पिता अम्मा बाबू से मिलने आ रहे थे ।घर में उत्सव का माहौल था ।आज हर्षा अत्यंत खुश थी, उसके मनमाफिक लड़का मिला था ।वह व्यापारी था, शिक्षित व कुलीन घराने का था । हर्षा का मन लड़के की एक झलक पाने के लिए बेताब था ।प्रातः से ही जलपान तैयार हो रहा था। हर्षा की मां दिल खोलकर पाक विद्या का कौशल हर्षा को सिखा रही थी। वह सलीके और तहजीब भी सिखा रही थी।

बहुत दिनों बाद उसके घर में खुशियों का माहौल था। घर में वर के माता-पिता का वर सहित आगमन हुआ। खूब स्वागत सत्कार हुआ। सेठ जी ने हर्षा को बुलाने के लिए हर्षा की मां से कहा। प्रज्ञा हर्षा को बहुत सलीके से सामने लाई। उसके हाथ में शीतल पेय की ट्रे थी , उसने वर के माता पिता को प्रथम शीतल पेय प्रदान किया ।फिर वर को शीतल पेय भेंट किया। इस दौरान झुकी झुकी निगाहों से उसने वर को पहली बार अपने नेत्रों से सजीव देखा। उसका मन लड़के के बारे में और बहुत कुछ जानने हेतु लालायित हो उठा ।उसने मां से कहा मां मैं लड़के से एकांत में बात करना चाहती हूँ। पहले तो प्रज्ञा झिझकी, फिर वर के माता-पिता से अनुमति लेकर लड़के को पास के कमरे में ले गयी।

हर्षा ने स्वागत किया ,व शिष्टाचार वश नमस्ते किया। लड़के ने बैठते हुए कहा -आपका क्या नाम है?

हर्षा ने मुस्कुराते हुए कहा- हर्षा!
और आपका-
उसने हैरान होते हुए कहा- हर्षित !
हर्षा ने धीरे धीरे धीरे से कहा ,बड़ा प्यारा नाम है ।धीरे-धीरे दोनों मित्र हो गए । दोनों ने आपस में दूरभाष नंबर लेकर भेंट करने की इच्छा प्रकट की ।

अब तक हर्षित के माता-पिता अपनी मांग के बारे में विस्तार से बता चुके थे। सेठ जी के पास धन की कोई कमी नहीं थी। किंतु ,बात तो सिद्धांतों की थी। हर्षा की दादी दान दहेज के सख्त खिलाफ थी। उसने कहा, यदि आप दहेज की मांग पर अडेंगे, तो यह विवाह कदापि संभव नहीं। हम अपनी हर्षा को अपनी हैसियत से अधिक करेंगे। किंतु, दहेज की मांग अनुचित है ।हर्षित के माता- पिता सास का कथन सुनकर सन्न रह गए ।उन्होंने स्वीकार किया ,कि उनसे गलती हुई है। हर्षा और हर्षित की जोड़ी अच्छी है। दोनों साथ में खुश रहेंगे। आपने जो संस्कार हर्षा को प्रदान किए हैं हम उसके लिए हृदय से आभारी हैं। हम बिना दहेज विवाह करने हेतु तैयार हैं। यदि आप अब आप राजी हो, तो मुंह मीठा तथा रोका की रश्म अविलंब निभाई जानी चाहिए।सुशीला और सेठ जी अत्यंत प्रसन्न हुए, और उन्होंने वर के माता-पिता का मुंह मीठा कराया।

हर्षा और हर्षित को बुलाया गया ,और रोका की रस्म संपन्न की गई।

सेठ जी ने विवाह में सभी गणमान्य व्यक्तियों को निमंत्रण भेजा। धूमधाम से हर्षा का विवाह हर्षित के साथ संपन्न हुआ। अगले दिन हर्षा की विदाई की गई। सभी अश्रुपूरित नेत्रों से हर्षा को विदा कर रहे थे।

उर्मिल मकान की छत से यह दृश्य देख रहा था। उसके आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। उसका पहला प्यार पराया हो चुका था। उसने सूनी गली को एक बार गौर से देखा ,शायद कोई चिन्ह उसकी प्रेमिका का वहां रह गया हो। किंतु, उसे मायूसी हाथ लगी। हर्षा की विदाई के साथ उसके सपनों का संसार बिखर गया था। उसका प्यार सच्चा था या जवानी का जोश ,या आकर्षण इसका उत्तर उसे खोजना था ।उसने किसी तरह अपने आप को संभाला और नम आंखों से सीढ़ियां उतरने लगा, और अतीत की स्मृतियों में हो गया।

Language: Hindi
143 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
14, मायका
14, मायका
Dr Shweta sood
*रामचरितमानस में अयोध्या कांड के तीन संस्कृत श्लोकों की दोहा
*रामचरितमानस में अयोध्या कांड के तीन संस्कृत श्लोकों की दोहा
Ravi Prakash
💐प्रेम कौतुक-303💐
💐प्रेम कौतुक-303💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
अंगुलिया
अंगुलिया
Sandeep Pande
फूल को,कलियों को,तोड़ना पड़ा
फूल को,कलियों को,तोड़ना पड़ा
कवि दीपक बवेजा
Safar : Classmates to Soulmates
Safar : Classmates to Soulmates
Prathmesh Yelne
" हर वर्ग की चुनावी चर्चा “
Dr Meenu Poonia
मां ने भेज है मामा के लिए प्यार भरा तोहफ़ा 🥰🥰🥰 �
मां ने भेज है मामा के लिए प्यार भरा तोहफ़ा 🥰🥰🥰 �
Swara Kumari arya
एक तो धर्म की ओढनी
एक तो धर्म की ओढनी
Mahender Singh
*ग़ज़ल*
*ग़ज़ल*
शेख रहमत अली "बस्तवी"
" भींगता बस मैं रहा "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
Jo mila  nahi  wo  bhi  theek  hai.., jo  hai  mil  gaya   w
Jo mila nahi wo bhi theek hai.., jo hai mil gaya w
Rekha Rajput
किताबों में झुके सिर दुनिया में हमेशा ऊठे रहते हैं l
किताबों में झुके सिर दुनिया में हमेशा ऊठे रहते हैं l
Ranjeet kumar patre
लव यू इंडिया
लव यू इंडिया
Kanchan Khanna
"विदाई की बेला में"
Dr. Kishan tandon kranti
बदलती फितरत
बदलती फितरत
Sûrëkhâ Rãthí
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Shweta Soni
होली की मुबारकबाद
होली की मुबारकबाद
Shekhar Chandra Mitra
जनपक्षधरता के कालजयी कवि रमेश रंजक :/-- ईश्वर दयाल गोस्वामी
जनपक्षधरता के कालजयी कवि रमेश रंजक :/-- ईश्वर दयाल गोस्वामी
ईश्वर दयाल गोस्वामी
हार
हार
पूर्वार्थ
मिस्टर जी आजाद
मिस्टर जी आजाद
gurudeenverma198
थक गये है हम......ख़ुद से
थक गये है हम......ख़ुद से
shabina. Naaz
सिद्धार्थ से वह 'बुद्ध' बने...
सिद्धार्थ से वह 'बुद्ध' बने...
Buddha Prakash
18- ऐ भारत में रहने वालों
18- ऐ भारत में रहने वालों
Ajay Kumar Vimal
!! सुविचार !!
!! सुविचार !!
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
डिग्रियां तो मात्र आपके शैक्षिक खर्चों की रसीद मात्र हैं ,
डिग्रियां तो मात्र आपके शैक्षिक खर्चों की रसीद मात्र हैं ,
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
Girvi rakh ke khud ke ashiyano ko
Girvi rakh ke khud ke ashiyano ko
Sakshi Tripathi
आंखों को मल गए
आंखों को मल गए
Dr fauzia Naseem shad
हम दुनिया के सभी मच्छरों को तो नहीं मार सकते है तो क्यों न ह
हम दुनिया के सभी मच्छरों को तो नहीं मार सकते है तो क्यों न ह
Rj Anand Prajapati
करके याद तुझे बना रहा  हूँ  अपने मिजाज  को.....
करके याद तुझे बना रहा हूँ अपने मिजाज को.....
Rakesh Singh
Loading...