बड़ी है इमारत बड़ा ये नगर है
बड़ी है इमारत बड़ा ये नगर है
यहाँ छत न आँगन मगर पास घर है
सवेरे सभी हड़बड़ी में निकलते
बिछी चाँदनी में घरों को पहुँचते
लगें एक मेहमान से घर में अपने
अलग ज़िन्दगी का यहाँ पर सफर है
बड़ी है इमारत बड़ा ये नगर है
नज़र हर जगह बस कबूतर ही आते
गुटर गूं गुटर गूं यही गुनगुनाते
नहीं चहचहाहट यहाँ पंछियों की
घुला जो धुएँ का हवा में जहर है
बड़ी है इमारत बड़ा ये नगर है
लड़ें माँ पिता घर में तन्हाइयों से
हुआ दूर रिश्ता बहन भाइयों से
अकेले अकेले जिए जा रहे ये
न अपनी न इनको किसी की खबर है
बड़ी है इमारत बड़ा ये नगर है
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र)