ब्रह्मांड निहित पर्व ‘छठ’
सुताथ्यिक प्रकृति, ब्रह्मांड निहित सूर्य उपासना पर्व के विहित बाँस, गेहूँ, अरवा चावल, नारियल, टाभा नींबू, नारंगी सहित तमाम मौसमी फल एवं मिट्टी, जल, लतायुक्त सब्जी के विन्यस्त: पत्ता सहित मूली, पत्ता सहित अदरक, हल्दी, गाजर, सुतनी, शकरकंद, मिश्रीकंद, पानी सिंघाड़ा, चना, मटर, संस्कृतिनिमित्त खबौनी, ठेकुआ इत्यादि पूज्यनीय हो जाते हैं , यही तो प्रकृति की पूजा है । पृथ्वी जहां सूर्य के इर्द-गिर्द ही सम्मोहित है, उसी भाँति पृथ्वीवासी ये ‘छठव्रती’ भी सूर्य और नदी जल के साथ जुड़ाव लिए हैं । पूर्व चर्चा में आये विशुद्ध आहार को ही ग्रहित किये जाकर, किन्तु 36 घण्टे निर्जला उपवास जहां ‘योग’ के प्रसंगश: आज के दैहिक-जरूरी के लिए अति महत्वपूर्ण तत्व है । कार्तिक मास में सूर्यताप अत्यधिक कम हो जाती है, इसके विन्यस्त: कार्तिक शुक्ल षष्ठी को जलाच्छादित शरीर से सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर में जल ‘क्रॉस’ कर सूर्यप्रकाश प्राप्त होने से शरीर रोगमुक्त होती है। परंतु हाँ, धरती घूमती है सूर्य की परिक्रमा के प्रसंगश: और एतदर्थ प्रकृतिपर्व सूर्योदय और सूर्यास्त में ‘अर्घ्य’ विन्यास को लेकर है ! ध्यातव्य है, वर्ष में चार बार छठ पर्व मनाए जाने का आख्यान है, किंतु कार्तिक शुक्ल षष्ठी के इतर चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि को मनाई जानेवाली छठ ज्यादा ही प्रसिद्धि प्राप्त है ।
ध्यातव्य है, बिहार व झारखंड को छोड़कर दूसरे प्रान्त की पत्रिका में दो दशक पूर्व ‘छठ’ पर मेरे ही न्यूज़फीचर पहलीबार प्रकाशित हुई थी । लोक आस्था का महान सूर्योपासना पर्व ‘छठ’ मनानेवाले भारतीय राज्यों से इतर राज्य से इस पर्व के बारे में पहली बार छपा ‘दीपावली से छठ तक’ नामक शीर्षक समाचार राजस्थान से प्रकाशित राष्ट्रीय साप्ताहिक ‘आमख्याल’ के दिनांक – 09.12.1993 अंक में छपा था । खासकर ‘छठ’ पर मेरे द्वारा लिखित और प्रेषित इसतरह के रिपोर्टिंग की आयु अब 24 बरस हो गयी है । सम्प्रति वर्ष-2019 में भारत के लगभग 30 करोड़ आबादी ‘छठ’ लोकपर्व से प्रभावित होंगे ! यह कुल भारतीय मानवों के 4.3 वाँ हिस्सा है । मूलत: बिहार, झारखण्ड सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश, प. बंगाल के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र, नेपाल के मधेशी क्षेत्र में ‘छठ’ मनाये जाते हैं । विदेशों में मॉरीशस आदि में भी मनाये जाते हैं । भोजपुरी बेल्ट तो वृहद स्थिति लिए इस हेतु शामिल है । इन क्षेत्रों को छोड़कर जहाँ ‘छठ’ नहीं मनाये जा रहे हैं , वैसे राज्यों (राजस्थान) के राष्ट्रीय हिंदी अखबार ‘आमख्याल’ में इनसे सम्बंधित रिपोर्टिंग-फ़ीचर पहलीबार मेरी ही छपी थी । यह पर्व ‘फोक फेस्टिवल’ लिए विस्तृत क्षेत्र और आबादी को प्रभावित करता है।
‘छठ’ विशुद्ध रूप से शाकाहार, आरवाहार, फलाहार इत्यादि आधारित पर्व है । मैं इस पर्व की आस्था, अंध-आस्था, लोक-मानस से उपजे गल्प या किसी प्रकार की सही पौराणिकता के ऊहापोह व मरीचिका में न आगोशित हो, इनकी वैज्ञानिकता पर जाते हैं । …. वर्षा जल से आक्रान्त पोखर-तालाब, नाले-गड्ढे के सूखते रूप तथा भद्दापन लिए घर-दरवाजे को पूर्व रूप देते-देते व सफाई करते-करते कार्तिक अमावस्या आ जाती है और सनातन धर्मावलम्बी इस रात (अमावस्या के कारण अँधेरी) काफी संख्या में दीप प्रज्वलित कर कीड़े-मकौड़े-मच्छरादि को भगाने का प्रयास करते है, जो विज्ञान-सम्मत है । दीपावली के अगले दिन पशु-प्रेम के प्रासंगिक मवेशी की पूजा (गोवर्द्धन पूजा) की जाती है, फिर पक्षियों और गोबर-गोयठे को लिए छठ-गान आरम्भ हो जाती है।
वाल्मीकि कारीगरों की कलाकृति बाँस की सूप, मौनी, डलिया इत्यादि , फिर पिछड़ी जातियों द्वारा उपजाए गए सामग्रियाँ इनमें शामिल होकर इस महौत्सव को चार-चाँद लगा बैठते हैं । आज हिन्दू के अतिरिक्त कई धर्मावलंबियों द्वारा ये पर्व मनाये जाते हैं , हमारे यहाँ इस्लाम और सिख आदि धर्मावलम्बी भी मनाते हैं । पूरे अनुष्ठान में सूर्य-पूजा को केंद्रित यह पर्व विज्ञान आधारित है । यह पर्व कर्मकांडी प्रवृत्ति से इतर बगैर पुरोहिताई की पूजा है ! माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने ‘छठ’ की महत्ता को अनोखे अंदाज़ में यूँ प्रकट किया-“सभी कोई उगते हुए सूरज की पूजा करते हैं, परंतु ‘छठ’ एकमात्र महौत्सव है, जहां डूबते सूरज की भी पूजा होती है ।”