बे-आवाज़. . . .
बे-आवाज़ …
छू लिया था
फ़लक को
मौन शमशान में
एक तन्हा
जलते हुए जिस्म के धुऐं ने
रोने वाली
कोई आँख साथ न थी
शायद कोई लावारिस था
या फिर
किसी ज़िदंगी के
फ़लसफ़े का
कोई हर्फ़
बे-आवाज़
घुट के
मर गया
इन्तिज़ार के लिहाफ में
सुशील सरना / 23-11-23