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24 Aug 2024 · 1 min read

बेसुरी खाँसी ….

बेसुरी खाँसी ….

मन ढूँढता रहा
नीरवता में खोये हुए
उस कोलाहल को
जो
साथ ले गया अपने
जीवन के अन्तिम पहर में
नीरवता को भेदती
खरखरी खाँसी की
बेसुरी आवाज़ें
जाने कितने सपने,
कितने दर्द छुपे थे
बूढ़ी माँ की
उस बेसुरी खरखरी
खाँसी में

पहले वो खाँसती थी
तो नींद नहीं आती थी
अब
न माँ है
न उसकी बेसुरी खाँसी
फिर भी
नींद नहीं आती
बस
एक अजीब सी रिक्तता में ढूँढता हूँ
फिर वही
बेसुरी खाँसी की खरखरी आवाज़
और
उस आवाज़ के पल्लू से बंधी
अपनी
माँ

सुशील सरना/

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