बेशक सेहत मंदों को बीमार लिखो,
बेशक सेहतमंदों को बीमार लिखो,
लेकिन अक़्ल के अंधोँ को सरकार लिखो,
जिसके सर पर पगड़ी है ख़ैरातों की,
वह भी कहता है, मुझको सरदार लिखो,
में जीता हूँ बाज़ी मेरी किस्मत है,
लाख किताबों में तुम मेरी हार लिखो,
मज़दूरी जब हमने मांगी उस दिन की,
ठेकेदार ने फ़रमाया, इतवार लिखो,
माली की नीयत में खोट है शायद कुछ,
कहता है, सारे फूलों को ख़ार लिखो,
मुंसिफ़, कोर्ट, गवाही यह सब नाटक था,
ऊपर का तो हुक्म था फ़ौरन दार लिखो,
©अशफ़ाक़ रशीद.