बेशक नहीं पसंद वो नफरत न हम रखेंगे
बेशक नहीं पसंद वो नफरत न हम रखेंगे
बस प्यार की वफ़ा की चाहत न हम रखेंगे
गमगीन हैं फ़ज़ाएँ दहशत है खलबली है
इस बेरहम हवा से क़ुरबत न हम रखेंगे
होते रहे जो यूँ ही सब खास दूर हमसे
इक रोज़ ज़िन्दगी की हसरत न हम रखेंगे
सुनले चमकते सूरज रह लेंगे तीरगी में
तेरे उजालों से तो निस्बत न हम रखेंगे
ऐ रहनुमा हमारे ली देख रहनुमाई
तुझ पर कभी भरोसा हज़रत न हम रखेंगे
लफ़्ज़ों में ढल रहे हैं तुम देखना किताबें
अब और बोलने की जहमत न हम रखेंगे