बेल v/s लता
लिपटने भर को बनी
क्या यही जीवन “लता”
बस मुझे इतना बता
जन्म जन्मों लिपटना
खुद चाहा बे-वजह या
मिली है कोई सजा ।
बेल हो या हो लता
सूखती फिर जन्म लेती
फलों के मोती पिरोती
पर लता आकाश लक्ष्यी
बढ़ती सहारे वृक्ष के
जो नपुंसक* संस्कृत में ।
बेल फैले धरा पर
चलें उसके ही सहारे
वाह वाह जीवन वाह रे
गोद में ही जन्म लेकर
आँचल में समा जाए
लता नहीं ये बेल होती ।
बढ़ो आगे धरा छूती बेल ज्यों
लता सी अंगड़ाई तज
लोट लोट ले धरा रज
तृष्णा लता सी बुरी है
जहां झुकने पर कोई
सहारा ही ना मिले ।
*संस्कृत में वृक्ष शब्द नपुंसक लिंग
माना जाता है ।