बेनाम रिश्ते …..
बेनाम रिश्ते ……
किसको लिखता और क्या लिखता
भीड़ थी अपनों की
मगर कहीं अपनापन न था
एक दूसरे को देखकर
मुस्कुराभर देना ही
अब शायद अपनेपन की सीमा थी
कहने के लिए ये खोखले रिश्ते
पल भर के लिए खिल जाते हैं
मगर
इन रिश्तों में दिल की तड़प नहीं होती
यादों का बवंडर नहीं होता
प्यार का समंदर नहीं होता
बस
एक खालीपन सा होता है इनमें
न मिलने की चाह होती है
न बिछुड़ने का ग़म होता है
इसीलिये
मैंने ट्रेन छूटने के बाद
उसे देने के लिए
हाथ में दबाया हुआ प्रेम पत्र
जिसके अक्षर
मेरे हाथ के पसीने के कारण
मिलने से पहले ही पिघल गए थे
बिना किसी कसक के
उस निष्ठुर पटरी पर
किसी बेनाम रिश्ते की तरह
हवा में उड़ जाने के लिए फेंक दिया
एक रिश्ते का अंजाम देख
मेरी आँखों की नमी मुस्कुराई
मैं भाव शून्य पटरी की तरह
ट्रेन को जाते हुए देखता रहा
जो एक रिश्ते को बेनाम कर गयी
क्या करूँ
इंसान हूँ
मगर
रिश्तों की फितरत से अनजान हूँ
झूठा हो या सच्चा
रिश्तों से कैसे बच सकता हूँ
इससे पहले कि कोई मेरे अश्क को पढ़ ले
मैं चल दिया
एक ऐसे रिश्ते की तलाश में
जिसमें अपनेपन की मिठास हो
मिलन की चाह हो
बिछुड़ने का दर्द हो
यादों को बवंडर हो
प्यार का समंदर हो
इक पहचान हो
इक नाम हो
मगर वो रिश्ता कभी
बेनाम न हो
सुशील सरना/18-12-23