===बेटी===
उसके मिट जाने के भय से
जब मां के भीग गये कपोल।
कोख में सिमटी नन्ही के भी
मोती टपके गोल गोल।
भीतर कुछ हलचल होती है
जब बेटी की मां रोती है।
माँ तेरे आंसू क्यों बहते हैं।
ये सब तुझसे क्या कहते हैं।
माँ तुझको मैं दुख दे-देकर
नहीं जग में आना चाहूंगी।
तुझको तिल-तिल मिटा-मिटा
क्या माँ मैं खुश रह पाऊंगी।
यह सुनकर मातृत्व का अंतस
उस नन्हीं सोच को भांप उठा।
और मन में उठती बुरी भावी
आशंकाओं से वह कांप उठा।
नहीं नहीं ओ नन्ही जान
आने से पहले न हो हैरान।
मैं दुनिया से लड़ जाऊँगी
पर तुझे जगत में लाऊंगी।
जब मैं इस जग में आई थी
माँ ने भी तो सही रुसवाई थी।
माँ साथ है तेरे पग पग पर
तू निराश न होना पल भर।
तेरी माँ संकल्प निभाएगी
बेटी तू दुनिया में आएगी।
खेले कूदेगी और बढ़ेगी
विश्व में परचम फैलाएगी।
जब बेटे को अंहकार वश
हम कभी नहीं कहते बेटी
फिर बेटी की तुलना भला
क्यों बेटे से की जाएगी।
बेटी तू इस संसार में अब
कोई माध्यम न बनाएगी।
बेटी है तू और इस रूप में
ही संसार में जगमगाएगी।
लाऊंगी तुझे इस दुनिया में
मैं तुझे दिखाऊंगी संसार।
बेटी तेरा इस जग में आना
मेरे लिए होगा एक त्योहार।
है भारत की गौरवान्वित बेटी
अब शीश उठा वह खड़ी हुई।
यूँ मात-पिता का संबल और
रखवाला बन कर अड़ी हुई।
बेटी अर्थी को है देती कंधा
और चिता को देती मुखाग्नि।
क्रियाकर्म क्या वह तो उनके
श्राद्धकर्म का दायित्व भी लेती।
फिर क्यों इस समाज ने यह
भ्रूणहत्या का राग अलापा है।
बेटे में ही ऐसी क्या खूबी है
जो बेटी से ऊंचा उसे मापा है।
इस कुप्रथा को बन्द कर के रहेंगे
भ्रूण हत्या प्रथा को नष्ट करके रहेंगे ।
हम छेड़ेंगे इसका महाअभियान
हम कर के रहेंगे यह कार्य महान।
अब नारी खुद आगे आएगी
खुद की ही जड़ें बचाएगी।
खुद को खुद की बर्बादी से
तभी सुरक्षित वह पाएगी।
—-रंजना माथुर दिनांक 28/04/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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