बेटी स्वतन्त्र कली
नाजुक कली,
धूप में हँसी खिली,
घर में जन्मी ।
फूल की कली,
पली बढ़ी है बेटी,
जग में खिली ।
माली की खुशी,
परवरिश वही,
भेद न करें ।
जग का अंश,
वंश की बगिया खिले,
संसार बढ़े ।
फैले सुगंध,
फूले कली बसंत ,
सहारा बनके,
स्वतन्त्र कली,
सुख का रस देती,
सक्षम बनी ।
बेटी है हक़
सम्मान चाहे घर,
न है बेचारी ।
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*** बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर ।