बेटियां तो बेटियां हैं आपकी हों या मेरी
बलात्कार केवल शारीरिक भूख की संतुष्टि का माध्यम नहीं हैं बल्कि ये एक माध्यम है बदले की आग को शान्त करने का, सामने वाले को उसकी नज़रों में गिराने का, अपनी दूषित मानसिकता को संतुष्टि प्रदान करने का, नफ़रतों की आग को भड़काने का, ये माध्यम नया नहीं है हमेशा से ही लोग अपनी लड़ाईयों में अपनी नफ़रतों में औरतों की इज़्ज़त लूटने को अपने दुश्मन को सबक सिखाने का बहुत सुलभ माध्यम मानते आयें हैं और अफ़सोस ये सिलसिला बिना किसी अवरोध के आज भी चल रहा है अंतर केवल इतना आया है कि आज के कुछ दूषित मानसिकता रखने वाले लोग छोटी-छोटी बच्चियों की इज़्ज़त लूटने और उन्हें मारने से भी नहीं हिचकिचा रहे हैं दरिन्दगी ऐसी कि शैतान भी पनाह मांगे जो है वो बहुत ही दुःखद और शर्मनाक है वहीं दुर्भाग्यपूर्ण भी कि इंसान आखिर इतना क्यों गिर गया है? मासूम बच्चियों के साथ दरिन्दगी करने वाले क्या इंसान कहलाने के योग्य है? नहीं बिल्कुल भी नहीं,इसलिए बहुत आवश्यक है कि ऐसे दरिन्दों और हैवानो को वो चाहें किसी भी धर्म से सम्बन्ध रखते हों किसी भी हाल में छोड़ा नहीं जाना चाहिए जब तक ऐसे लोगों को फांसी पर न लटका दिया जाए, अगर अब ज़रा भी ढील दी तो परिणाम बहुत घातक होंगे और मैं नहीं समझती कि एक बेटी का पिता इस तकलीफ़ से गुज़रना चाहेगा इसलिए खुलकर हर ग़लत बात का विरोध कीजिए क्योंकि आपकी खामोशी भी एक महत्वपूर्ण कारण बनती है अपराध को बढ़ावा प्रदान करने में और अपराधियों के हौसले बढ़ाने में, इसलिए गलत बात का विरोध हर नफ़रत को भुला कर कीजिए क्योंकि बेटियां तो बेटियां होती हैं आपकी हो या मेरी ….
डाॅ फौज़िया नसीम शाद