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7 Jan 2023 · 7 min read

*बेचारे वरिष्ठ नागरिक (हास्य व्यंग्य)*

बेचारे वरिष्ठ नागरिक (हास्य व्यंग्य)
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आयु के आधार पर लोगों को वरिष्ठ कहने की एक परंपरा चलती रहती है। जैसे अगर कोई थोड़ा सा बुजुर्ग दिखने वाला कवि ,लेखक ,साहित्यकार ,व्यापारी या समाजसेवी है तब उसे वरिष्ठ कवि, वरिष्ठ लेखक ,वरिष्ठ साहित्यकार, वरिष्ठ समाजसेवी आदि लिख दिया जाता है। हालाँकि ऐसा लिखते समय एक मजबूरी यह भी रहती है कि और क्या लिखा जाए ? इसलिए वरिष्ठ लिख कर काम चला लिया जाता है ।
जब एक सज्जन साठ साल के हुए ,तब उनके पास सीनियर सिटीजन क्लब का निमंत्रण आया कि आप हमारे क्लब में शामिल हो जाइए क्योंकि आप वरिष्ठ नागरिक बन चुके हैं । वह अचंभे में पड़ गए कि आखिर एक दिन में ऐसा क्या हो गया कि हम नागरिक से वरिष्ठ नागरिक बन गए । वरिष्ठता इस तरह उनके ऊपर लाद दी गई कि वह चाह कर भी यह नहीं कह सकते कि अब वह वरिष्ठ नहीं हैं।
वैसे वरिष्ठता के अपने फायदे भी होते हैं । जैसे कई स्थानों पर आधा टिकट लगता है । कुछ जगह टिकट में कुछ प्रतिशत की छूट रहती है । कई जगह टिकट खरीदने के लिए वरिष्ठ लोगों की अलग लाइन बनती है। नोटबंदी के दौरान जब एक पनपचिया अर्थात पचपन वर्ष की आयु वाले सज्जन चार हजार रुपए निकालने के लिए बैंक गये थे ,उस समय वह वरिष्ठ नागरिक नहीं थे । लेकिन बालों में डाई नहीं लगाने के कारण उनके बालों पर सफेदी का असर होने लगा था । अतः मौका देख कर वरिष्ठ नागरिकों की लाइन में चले गये । उनके सफेद बालों को देखकर किसी ने आपत्ति नहीं की जबकि दूसरी ओर अपने बालों पर काली डाई लगाए हुए सत्तर साल के बूढ़ों ने जब वरिष्ठ नागरिकों की लाइन में लगना चाहा तब उन्हें पुलिस वाले ने डंडा फटकार कर भगा दिया कि “शर्म नहीं आती काले बालों के साथ वरिष्ठ नागरिकों की लाइन में लगना चाहते हो ?” उन बेचारों ने बालों को काला करने की अपनी आदत को उस समय कितना बुरा-भला कहा होगा, इसका केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है ।वरिष्ठ नागरिक होने से फायदे ही फायदे हैं । आदमी किसी भी दफ्तर में जीना चढ़ने से इंकार कर सकता है और कह सकता है कि अब मैं वरिष्ठ हो गया हूँ। अब मुझ से जीना नहीं चढ़ा जाएगा।
लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं। व्यक्ति से यह भी कहा जा सकता है कि अब आप किसी काम के नहीं रह गए । अगर किसी ऐसी इमारत में व्यक्ति को अपने पद का दायित्व निभाना है जहाँ पहली मंजिल या दूसरी मंजिल पर भी जीना चढ़कर जाना पड़ता है ,तब वहाँ से उसको जबरन अवकाश दिला दिया जाएगा और कह दिया जाएगा कि अब आप वरिष्ठ नागरिक हो चुके हैं तथा आप की आवश्यकता नहीं है ।
राजनीति में तो यह विचार अनेक दशकों से घूम रहा है कि जैसे ही व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक बने अर्थात साठ वर्ष का हो जाए उसे राजनीति से रिटायर हो जाना चाहिए । लेकिन कोई नेता राजनीति से रिटायर नहीं हुआ । लोग अस्सी और पिच्चासी वर्ष के हो गए ,तब भी उनके मन में लड्डू फूटते रहे ।
उम्र कम दिखाने के बहुत से उपाय होते हैं । बालों में काली डाई लगाना इसका एक उदाहरण है । हालांकि जो लोग बहुत समय तक डाई लगाते रहते हैं ,फिर बाद में उन्हें इसके साइड इफेक्ट पता चलते हैं और फिर वह डाई लगाना बंद कर देते हैं । उसके बाद वह कभी तो बिल्कुल काले बालों के साथ बाजार में दिखते हैं और कभी बिल्कुल सफेद बालों के साथ उनके दर्शन होते हैं। उनकी समझ में नहीं आता कि हम डाई लगाएँ या छोड़ दें? इधर खाई ,उधर कुआँ। या तो बूढ़े दिखने लाओगे या फिर साइड इफेक्ट झेलते रहोगे । कई लोग अपने चेहरे की झुर्रियों को छुपाने के लिए न जाने क्या- क्या इलाज कराते हैं मगर उम्र कैसे छुप सकती है । वह तो एक ऐसी दूती है जो खुद बता देती है ।
रहन-सहन के मामले में भी उम्र का नाटक चलता रहता है । अगर वरिष्ठ नागरिक बाजार में कपड़ा खरीदने जाता है और कोई रंग-बिरंगी बुशर्ट खरीदना चाहे तो प्रायः पत्नियाँ टोक देती हैं कि अब इस उम्र में क्या इस तरीके की छींटदार बुश्शर्ट पहनते हुए अच्छे लगोगे ? आदमी मन मसोस कर रह जाता है । चलो भाई ,क्रीम कलर की सीधी-सादी शर्ट ही खरीद लेते हैं । कई वरिष्ठ नागरिक तो स्वयं अपने आप को इतना ज्यादा वरिष्ठ मान बैठे हैं कि कहीं भी उल्लास और उमंग के साथ उपस्थित होने की बात आती है तो पहले ही कह देते हैं कि अब हमारी इन सब बातों की उम्र नहीं रही अर्थात इधर आदमी साठ का हुआ ,उधर जीवन के सारे सुखों से वंचित हो गया। हद तो तब हो जाती है जब बच्चे मिल – बैठकर कहीं जाने का प्रोग्राम बनाते हैं और पिकनिक -सैर सपाटे आदि के बारे में सोचते हैं तो उनका यही कहना होता है किसी तीर्थस्थान पर चलने का इस बार प्रोग्राम बना लेते हैं। माताजी और पिताजी के लिए तो इस उम्र में यही ठीक रहेगा । आदमी सोचने के लिए विवश हो जाता है कि मैं साठ का हुआ ,क्या मेरे लिए अब तीर्थयात्रा ही बची है ?
देखिए ! समाज कितना शक्की होता है ! एक लेखक के हास्य-व्यंग्य लेख को किसी महिला ने फेसबुक पर लाइक कर दिया और इस घटना को उनकी श्रीमती जी की जासूसी निगाहों ने पकड़ लिया । बस इंटरव्यू शुरू हो गया । यह महिला कौन है …कहाँ रहती है… आयु कितनी है …तुम्हारा इस से संपर्क कैसे आया ….जरा यह तो सोचो कि अब तुम्हारी उम्र साठ साल से ज्यादा हो गई है ..आदि-आदि । वह कहते ही रह गए कि उनके हास्य व्यंग्य को अगर कोई महिला लाइक करती है तो उनकी इसमें क्या गलती है और वह क्या कर सकते हैं ? मगर उनकी एक न सुनी गई । जैसे अपराधियों को प्रतिदिन थाने में हाजिर होने का निर्देश दिया जाता है , ठीक उसी तरह उन्हें प्रतिदिन अपनी फेसबुक दिखाने का निर्देश दे दिया गया और कहा गया कि अगर कोई महिला तुम्हारी फेसबुक पोस्ट को लाइक करती है तब स्पष्टीकरण तुमसे पूछा जाएगा। तब से वह रोजाना डरते रहते हैं कि कहीं वह कुछ ऐसा शानदार न लिख बैठें कि जिसे कोई महिला पाठक लाइक कर दे और वह मुसीबत में फँस जाएँ।
कई बार पत्नियाँ भी गलत नहीं सोचती है । साठ साल तक तो लोग सीधे – साधे तरीके से चलते रहते हैं । फिर उसके बाद बिगड़ जाते हैं । बहुत से लोग पैंसठ वर्ष की आयु में अपनी पहली पत्नी को तलाक देकर दूसरी शादी करते हुए पाए गए हैं। इसलिए वरिष्ठ नागरिक बनने का अर्थ यह नहीं है कि पत्नियाँ नजर रखना छोड़ दें या सतर्कता बरतना समाप्त कर दें। पतियों के बिगड़ने की गुंजाइश तो रहती ही है । किस से मेलजोल है ,किस से मित्रता है और बात कहाँ से कहाँ तक पहुंच रही है, उसका लेखा-जोखा हर पत्नी को अपने वरिष्ठ नागरिक पति के बारे में भी रखना चाहिए अन्यथा तलाक कोई मुश्किल बात नहीं है। यह तो दिल आने की बात होती है। जिसका जिससे तारतम्य बैठ गया ,समझ लो वह उसी की सुर ताल में मगन हो गया । कवि को कवयित्री मिल गई ,गायक को गायिका मिल गई । पति को तो मिल गई लेकिन पत्नी के हाथ से पति चला गया । इसलिए पतियों के जीवन में वरिष्ठ नागरिक बनने के बाद जो परिवर्तन आते हैं ,उन्हें नोट किया जाना चाहिए । क्या पतियों का स्वभाव चंचल तो नहीं होने लगा ? कुछ चटक मटक की रंगीन कपड़ों की फरमाइश तो नहीं होने लगी ? चाट खाने का शौक तो पैदा नहीं हुआ ? तीखी मिर्ची कई लोग साठ के बाद शुरू करते हैं । इन सबसे वरिष्ठ नागरिकों में होने वाले हार्मोन के परिवर्तन को पहचानने की जरूरत है।
पति बेचारे वरिष्ठ नागरिक बनने के बाद भी बहुत परेशान रहते हैं । गलती दो-चार लोग करते हैं , बिगड़ते नाममात्र लोग हैं और सजा सबको भुगतनी पड़ती है । इधर वरिष्ठ नागरिक बने ,उधर सारी चीजों पर प्रतिबंध लग जाता है । जरा-सी भी कोई गलत हरकत हुई तो यह माना जाता है कि इनके हार्मोन में कोई परिवर्तन आने लगा है । बस पत्नी जी का अनुशासन का चाबुक चलना शुरू हो जाता है ।
चटोरी जीभ पर भी प्रतिबंध लगने आरंभ हो जाते हैं । तली हुई पूड़ियाँ और कचौड़िया एकदम बंद हो जाती हैं। अगर पराँठे पर भी ज्यादा घी लगवाओ तो यह नसीहत सुनने को मिलती है कि अब तो साठ के हो गए , कब तक घी के पराँठे खाओगे ?
जलेबी – इमरती आदि गरम-गरम खाने का मन करे , तो भी यही उपदेश सुनने को मिलते हैं कि साठ के हो गए ,कुछ तो जीभ पर कंट्रोल करो । कुछ बातें तो अपनी जगह सही हैं कि उम्र के साथ-साथ पाचन शक्ति थोड़ी कम होती जाती है । लेकिन ऐसा भी क्या उम्र का रोना कि न कुछ खाओ ,न चटक-मटक का पहनो , न बढ़िया जगहों पर घूमने के लिए जाओ । 60 साल का हो जाने के कारण दिनभर बैठकर धर्मग्रंथों का पाठ तो सब से नहीं होगा ।
मुसीबत सचमुच उन लोगों की है जिनकी आयु तो साठ वर्ष की हो गई है लेकिन शरीर बूढ़ा नहीं हुआ है और मन तो अभी भी हवा से बातें करता है । वह गाना चाहते हैं कि…..अभी तो मैं जवान हूँ । मगर उनकी आवाज घुट कर रह जाती है या यूँ कहिए कि समाज उन्हें बोलने नहीं देता । बेचारे वरिष्ठ नागरिक ।
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””
लेखक : रवि प्रकाश ,
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
102 Views
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