बेचारा दिन
मुझे
इस पर दया आ रही है
कितना निरीह है
यह बेचारा दिन
देखो न!
दीपावली का दिन
त्योहार तो है पर
मेरे लिए
हर पुराने दिन की तरह ही आया है
यह दिन भी
कोई भी तो खास बात नहीं इस दिन की
हाँ! सुबह सवेरे से
शुरू हो गई थी
मित्रों-परिचितों की
शुभकामनाएँ
बहुत से मित्रों ने लिख भेजीं
सुन्दर सी
कोमल भावों से भरी कविताएँ
मेरा भी मन किया कुछ लिखूँ
दीपकों के उजालों पर,
रात की स्याही पर
उच्च न्यायालय द्वारा रोकी जाने पर भी
पूरी रात कानों के पीछे फटती
आतिशबाजी पर,
तमाम शोरो-गुल के बाद भी
खरीदी गई चाइनीज
रोशनियों पर कुछ तो लिखूँ
पर नहीं लिख पाई कुछ भी
तुम! गई पूरी रात
मेरे इर्द-गिर्द घूमते रहे
एक साया बन कर
धड़कते रहे मेरा ही दिल बनकर
मुझे अहसास कराते रहे
अपने होने का
पूरी रात
तुम्हारे उस चिर परिचत
मंहगे कत्थई रंग के सिगरेट की गंध
भरती रही मेरे नथुनो में
जिसे तुमने
मेरे लाख विरोध के बाद भी
नहीं छोड़ा था
मेरा दिल चाहा कि मैं
फूट-फूट कर रो पड़ूँ
पर कैसे रोती
बेचारा त्योहार का दिन था न
कैसे जलाऊँ मैं प्रीत के दिए
ओ! अशरीरी!
क्यों बना दिया तुमने
मेरे लिए यह दिन भी
वही पुराना, बेचारा
थका सा, उनींदा, उदास दिन
बेचारा दिन