बेऔलाद ही ठीक है यारों, हॉं ऐसी औलाद से
(शेर)- कर दी है क्या दशा, औलाद ने माँ – बाप की।
मिला दी मिट्टी में इज्जत, औलाद ने माँ-बाप की।।
दिया नहीं कुछ भी सुख,जीवन में माँ-बाप को।
बना दी है जहन्नुम जिंदगी, औलाद ने माँ-बाप की।।
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बेऔलाद ही ठीक है यारों, हाँ ऐसी औलाद से।
माँ- बाप को सुख नहीं है, गर अपनी औलाद से।।
बेऔलाद ही ठीक है यारों ———————–।।
किस किसकी नहीं पूजा की है, पाने को औलाद।
कितने दिन जगरातें किये हैं, पाने को औलाद।।
दर – दर की ठोकर मिली, गर अपनी औलाद से।
बेऔलाद ही ठीक है यारों———————।।
रखने को औलाद को खुश, माँ-बाप भूखे सोते हैं।
औलाद के ख्वाब करने को पूरे, कर्ज भी लेते हैं।।
नहीं मदद मिले जीवन में, गर अपनी औलाद से।
बेऔलाद ही ठीक है यारों———————।।
करते हैं झगड़ा और पिटाई, आये दिन माँ- बाप से।
करते हैं मौज- मस्तियां जो, होकर अलग माँ-बाप से।।
अरमान खाक हो जाते हैं, गर अपनी औलाद से।
बेऔलाद ही ठीक है यारों——————-।।
आती नहीं है जिनको दया, अपने माँ- बाप पर।
रहते हैं हमेशा निर्भर जो, अपने माँ – बाप पर।।
मिलते हैं हमेशा ही आँसू , गर अपनी औलाद से।
बेऔलाद ही ठीक है यारों——————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)