*** ” बूढ़ी माँ की ओ बातें……!!! ” ***
*** कुछ अटपटी , कुछ चटपटी ख़बर सुनाता हूँ ;
आओ आज एक हकीकत से परिचय कराता हूँ ।
नई-नई डगर थी ,
और बस की सफर थी।
मैं भी था कुछ अनजान ,
सफर से था थोड़ा परेशान ।
ऊँच-नीच की ओ डगर ,
भारी-भरकम भीड़ की ओ क़हर ।
कहीं पर गर्त-कीचड़ ,
और कहीं पर ओ जंघम ढेर-पत्थर ।
चरमराती ढांचों की संग (बस की) ,
कुछ दूर भी जाना था अति दुर्भर ।
उबड़-खाबड़-सी डगर में , अनचाही ओ सफर में ;
डगमगाती हौंसले , टेढ़ी-मेढ़ी राहों के असर में।
फिर भी चलना था , बहुत जरूरी ;
उसी अटपटी डगर में ।
कभी-कभी मन में होता था, कुछ होने का भी डर ;
पर चले जा रहे थे हम ,जैसे कोई नादान बे-खबर ।
*** चाल थी औसत से कुछ अधिक ,
कभी-कभी अचानक धीमी गति से (बस की) ;
होती आपस में टकराव चीख-चीक ।
गतिमान परिवहन में ,
आगे कुछ चींव-चाँव की शोरगुल भरी ओ महफ़िल ;
और पीछे से आती ,
” जरा संभलकर खड़े हो , बत्तमीज़-गंवार जाहिल ” ।
ऐसा प्रतीत होता था ,
जैसे कोई कौआ-कुत्ता-बिल्ली लड़ रहा था ।
बीच में ,
” हे माई , हे ताई , तनिक संभल कर चलो-रे ओ भाई ” ।
और मैं भी कहने लगा ,
” अरे यार कैसी मुश्किल भरी है , ये सफर ” ।
लगता है बस यहीं पर , टुट जायेगा ये नाजुक कमर ;
आज इस तंग डगर ।
फिर भी हम करें क्या …? सबको चलना था ,
अपनी-अपनी मंजिल की ओर बढ़ना था ।
*** सुनकर हमारी बातें ,
बस परिचालक कहने लगा ;
” ये तो मेरा हर रोज का झमेला है । ”
” रुपये-पैसे कमाने का अजब-गजब ठेला है । ”
भीड़ भी कुछ अधिक है ,
शायद…! आज अपना , बहुत ही अच्छा नसीब है ।
” पैसा कमाऊँगा कुछ पोटली भर-भर कर ,
यात्रियों के सफर मंगलमय हो या न हो ;
मैं आवारा… क्यों करुँ इनकी फिकर ” ।
” आज निज-निशा-मधुशाला रंगीन हो जायेगा ,
देशी नहीं विदेशी मधुरस हाला से होंठ गीला हो जायेगा ” ।
कुछ इसी मस्ताने धुन में ,
बस परिचालक कुछ गुनगुनाने लगा ;
और दूरी अनुसार किराये की टिकट काटने लगा ।
कौन है हम उम्र , कौन है जरा , कौन है वयोवृद्ध ;
उसे ये सब नज़र नहीं आने लगा ।
*** इसी भीड़ में एक बूढ़ी माँ खड़ी थी ,
” हरे राम हरे राम…! , कृष्णा-कृष्णा हरे-हरे ..!! ”
जाप करती एक किनारे पर पड़ी थी ।
राम-कृष्ण की जाप से उनकी सांसें भी अटक रही थी ।।
टेढ़ी-मेढ़ी राहों पर ;
कभी दाएं , कभी बाएं परिचालन से , (बस की )
घबरा रही खंभों ( बस में लगी राड ) को पकड़ लटक रही थी ।
और कह रही थी ,
” इससे अच्छा तो मैं मर जाती प्रभु राम जी ” ।
” फोकट में भगवान घर पहुँच जाती मेरे राधे-श्याम जी “।
” बिन गंगा-स्नान मोक्ष द्वार पहुँच जाती चंद्रभान जी ” ।
और
” दुनिया के माया-जाल से निकल जाती हे हनुमान जी ” ।
*** सुनकर उक्त बातें , परिचालक जी कहने लगा ;
” चुप कर ओ बूढ़ी माई , टीर-टीर कर रही है ” ।
” बिन कुछ किये , पान-पत्ते की तरह हिल रही है ” ।
” कब से किराए की पैसा मांग रहा हूँ , पैसे की गठरी भी
नहीं खोल रही है ” ।
” ला दे पैसा , कहाँ…..? जाओगी ;
अन्यथा यहीं पर जबरदस्ती उतारी जाओगी ” ।
बूढ़ी माँ बोली ,
” क्या बोले कन्डेक्टर बेटा……ऽऽऽऽ ” …? ;
” कितना आना और कितना कौड़ी…..?? ”
” ला दे पकड़ा , बुढ़ेपन की सहरा , ये बांस-लकड़ी की
छड़ी ….!!! ” ।
” तनिक खिसक , ‘ सीपत (काल्पनिक गाँव) जाऊँगी ” ।।
ले पैसा ……!!!
” चल आगे बढ़ , मैं थोड़ी देर में , उतर जाऊँगी ” ।
बेटा… रामलला …ऽऽऽ , इस तरह बातें नहीं करते ;
” मैं बूढ़ी सयानी ममता की माई हूँ ” ।
” यदि माने तो शिवरी-सी अद्वितीय महामाई हूँ ” ।
” अदीति सीता जैसी बेटी की जन्मदात्री माई हूँ ” ।
और ” जगत-जननी जगदंबिका-सी माता माई हूँ ” ।
उक्त बातें सुन-सोचकर , मेरी जुबान ;
कुछ कहने से पहले ही अटक गई ।
रामलला परिचालक जी की , बड़बोलेपन ;
उनकी ही विचारों में लटक गई ।।
अब कहता है ये मनचला बलदेव आवारा ;
क्या कोई बतायेगा ……???
किस ओर इंगित करती है….
इस बूढ़ी माँ की उद्बोधित बातों के इशारें……!!!
और कुछ अनुमान लगाओ तो जाने ,
असमान में कितने हैं तारें……!!!
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर छत्तीसगढ़
२० / ०४/ २०२०
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