बूंद भर आब
बूंद भर आब से बनकर,
सफर पर निकले हैं सारे।
रूकेंगे खाक बनकर के,
किसी मंजिल पर जाकर ये।
फ़क़त मिट्टी का पुतला है,
अकड़ से कुछ नहीं होगा।
शुपुर्द ए ख़ाक होगा या,
शुपुर्द ए आग होगा तू।
जिन्हें चाहा जिन्दंगी भर,
वही भागेंगे जल्दी से।
अकेला होगा मदफ़न में,
कोई तेरे पास न होगा।
तेरा बंगला तेरा ओहदा
धरा रह जाएगा सारा।
रहे यूँ ही यहां पर सब,
जहां में तू नहीं होगा।
मिला जामा मुबारक़ ये,
सोच मकसद है इसका क्या।
खोज मुरशिद कोई पूरा,
व कोशिश कर इबादत की।
सतीश सृजन, लखनऊ.