बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -194 के श्रेष्ठ दोहे (बिषय-चीपा)
194 बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -194
प्रदत्त शब्द- चीपा” (सपने में आवाज नहीं निकलना)
दि०१४-१२-२०२४
प्राप्त प्रविष्ठियां :-
संयोजक -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आयोजक – जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
1
सपने में जब भूत ने,हंस हंस के डरवाव।
ऊपर सें चीपा चढ़ो,कैसें करें बचाव।।
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-वीरेन्द चंसौरिया टीकमगढ़
2
चीपा नैं दाबौ हतौ,तनकउ नै चिग पाय ।
लगवै मोखौं सोत में,हांत बाँद लै जाय ।।
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-शोभाराम दाँगी इंदु, नदनवारा
3
चीपा ने काटा उसे ,अत:बोल है बन्द।
हरि हरि बोले हृदय में,बने सहाय मुकुन्द।।
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-रामसेवक पाठक ‘हरिकिंकर’, ललितपुर
4
चीपा दाबै जौन खों, मन भारी उमछात।
कितनउॅं चिचिया लेव पै,मों सें कड़े न बात।।
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– भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”,हटा
5
जीके मन में भै भरो, चिंता चित्त सताय,
वे बर्रावें दँदकवें, चीपा लेत दबाय ।
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-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
6
सपने चीपा नैं सुनी, का बीदो जो दंद।
यम को भैंसा देख कैं, घिग्गी हो गइ बंद।।
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-श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा, विदिशा
7
अड़िया की गिलटी चड़ै ,चीपा गरौ दबाय।
इनकौ कोनउॅं बैद नों ,नइॅंयाॅं कछू उपाय।।
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-आशाराम वर्मा “नादान” पृथ्वीपुर
8
छातीपै चीपा चडो,मोखां आन दबाव।
घबराकें चिल्यातरव ,कोउ न ऐंगर आव।।
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-एम एल ‘त्यागी’, खरगापुर
9
सुटपुटाँयँ नइँ मौं खुले , चीपा दाबें डाड़ ।
चरचरात है साँतरी , किटकिटात हैं हाड़ ।।
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– प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ
10
सयन करौ चित्रकूट में, लव चीपा नें चाँप।
देख रयीं हैं जानकी, भऔ भरत खों पाप।
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– रामानंद पाठक,नैगुवां
11
मन की गाँठें जब खुलैं,गड्ड बड्ड सब होत।
चीपा लेत चपेट है,बिन चिल्लायैं रोत।।
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-सुभाष सिंघई, जतारा
12
कोऊ दाबन कैत है,कोऊ चीपा कैत।
सोउत मै बोलत मनो,भांँस भीतरइ रैत।।
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-तरुणा खरे, जबलपुर
13
रावन चीपा में चपो, मौ सें कड़े न बात।
धनुस बान लयँ राम जी, रगड़त उयै दिखात।।
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– डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ामलहरा
14
चीपा ने जब दाव लव, यैसौ लगवै मोय।
कोऊ चड़कें मूँड पै, गरौ मसक रव होय।।
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-अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी
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संयोजक राजीव नामदेव “राना लिधौरी’
मोबाइल -9893520965