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11 Jan 2022 · 2 min read

बुधिया और कस्तूरबा विद्यालय(बेहतरीन कविता)

बुधिया और कस्तूरबा विद्यालय /कविता
नेतलाल यादव ।
——————————————-
एक गाँव के ,अंतिम छोर पर
मिट्टी के घर में ,रहती थी बुधिया
फूल-सी बेटियों के साथ
जो पंखुड़ियों में थीं
दर्द के आँसू को पीकर
फटे कपड़ों को सीकर
बदनसीबी को पाकर
बासी भोजन खाकर
चुनौतियों से लड़ती थी बुधिया
एक दिन पड़ गई बीमार
देखते ही देखते गंदगियों से
भर गया,उसका घर-द्वार
तब घर की देहरी पर बैठकर
डॉक्टर को दिखाई
जो मोहल्ले में आते थे
जिनसे लोग इलाज कराते थे
बहुत गंभीर होकर
करते थे इलाज
जिन पर गाँव वालों को
बहुत था नाज
उन्होंने आज बुधिया को
अपने झोले से दी दवाई
खाने के तरीके समझाए
जैसे क्लास में बच्चों को
मोहन गुरुजी समझाते थे
डॉक्टर साहब ने कहा था
बुधिया समय-समय पर
दवाई लेते ही रहना
दिन में दो -दो ढक्कन
पर ढक्कन का मतलब
कहाँ जानती थी बुधिया
उसने कभी स्कूल नहीं देखा था
कभी स्लेट नहीं छुई थी
और ना ही कोई चॉक
तभी तो ढक्कन का अर्थ
नहीं लगा पाई
हो गई बड़ी भूल उससे
ढक्कन का मतलब
घर का कटोरा समझ बैठी
पी गई बोतल की सारी दवाई
किसी तरह मरते-मरते
बच गई थी बुधिया
अनपढ़ जिंदगी बेकार लगी थी
इस घटना से,वह जगी थी
दाखिला कराई थी,अपने बच्चों को
कस्तूरबा विद्यालय में
उनकी लड़कियाँ,अब पढ़ रही हैं
दो कदम आगे बढ़ रही हैं
बेटियों के कहने पर
घर में शौचालय बनवाया है
इस तरह बेवा बुधिया ने
जबरदस्त परिवर्तन लाया है
सबकी नजरों में ,आज उसने
अपनी इज्ज़त बनाई है
गरीबी, लाचारी और बेबसी में भी
बेटियों को पढ़ाया है ।।
*****************************
नोट-सर्वाधिकार सुरक्षित, अप्रकाशित ।
नेतलाल यादव
उत्क्रमित उच्च विद्यालय शहरपुरा, जमुआ,गिरिडीह, झारखंड, पिन कोड-815312

Language: Hindi
1 Like · 500 Views
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