बुंदेली_मुकरियाँ
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#राजीव_नामदेव “#राना_लिधौरी”
#बुंदेली_मुकरियाँ*
दिखत गुनन से भौत छबीला |
मौनौ आकै बनत रँगीला |
संग न छोड़े जब से भाँउर –
का री साजन ? नाँ री माँउर |
अब तौ मौरो पेट पिराबै |
यैसौ लगबै अब कै आबै |
साँसी मैने तौसे उगली –
ऐ री हौने ? नाँ री -चुगली |
गुइयाँ ऊसै खुद मैं उरजी |
चली औइ की मौपे मरजी |
पीरी पर गइ चढ़ गइ गरदी –
का री बालम ? नाँ री हरदी |
नाक पकर कै हँसबौ हौबे |
इक दूजै में सासउँ खौबे ||
आपस में समझत हैं कथनी –
ऐ री साजन ? नाँ री नथनी |
ऊ खौं देखत मन हरसाबे |
नौनों लगतइ तौसे काबे |
मन कौ लगतइ है चित चोर –
का री साजन ? नाँ री मोर |
बिर्रा अपने बार रखत है |
ठाड़ौ आँगन से हेरत है |
हाथन आबै बनत जुगाडू –
का री बालम ? नाँ री झाडू |
अपनी कीमत भौत बताबै |
मौरे सँग खौं दौरत आबै |
मौरे लेंगर लगै सलोना-
का री बालम ? नाँ री सोना |
मौरी छाती सैं आ चिपके |
रबै सबइँ से साँसउँ छिपके |
मैं भी चिपका कै रत भोली –
का री साजन ? नाँ री चोली |
*** दिनांक-15-5-2024
©- #राजीव_नामदेव “#राना_लिधौरी”
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
संपादक “अनुश्रुति” त्रैमासिक बुंदेलीक्षपत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
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