बुंदेली दोहे- नतैत (रिश्तेदार)
बुंदेली दोहा -बिषय-नतैत (रिश्तेदार)
#राना घरै नतैत हौं,चैल-पैल तब रात।
खातिरदारी हौत है,घर के सब मुस्कात।।
घर में परै नतैत हौं,खूब बनत पकवान।
चढ़ी करैया रात है,#राना रत मुस्कान।।
पूजत जिनके पाँव है,हौबें अगर नतैत।
तब’राना’ऐसौ लगत,आइ फसल हौ चैत।।
आत पुरा के लोग हैं,हाल-चाल सब लैत।
चिलम तमाकू है भरत’राना’उनखौ दैत।।
यैड़ा अगर नतैत हौ,मौं खौ सब बिचकात।
आ गवँ कासै है घरै ,#राना नँईं पुसात।।
एक हास्य दोहा –
धना कात #राना सुनौ,घर नतैत है आय।
पूरौ आ गवँ मायकौ,मौरौ मन मुस्काय।।
🤑 दिनांक-13-7-2024
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✍️ -राजीव नामदेव “राना लिधौरी”
संपादक “आकांक्षा” हिंदी पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
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