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4 May 2024 · 2 min read

बुंदेली दोहा – सुड़ी

बुन्देली दोहा प्रतियोगिता-162
संयोजक राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
शनिवार,दिनांक – 04/05/2024
बिषय – ‘ सुड़ी ‘
1
रेंन,कनक,कै हो कुदइ,जादाँ नहीं खटात।
मइँनन जो भरकें धरौ,सदाँ सुडी पर जात।।
***
– डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलहरा
2
सुडी चनन में जा लगी,भओ बोत नुकसान।
भई फसल आदी बची,का गत भइ भगवान।।
***
-श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा, विदिशा
3
दार भात रोटी चुपर, थारी दइ सरकाय।
देख सुड़ी खौ दार में,कौर न गुटकों जाय।।
***
– एस आर ‘सरल’, टीकमगढ़
4
सुडी सड़े में है मिलत ,सड़ी चीज दो फेंक।
ताजौ खाना खाव तुम ,रोज आग पै सेंक।।
***
-वीरेन्द्र चंसौरिया ,टीकमगढ़
5
राजनीति में अब सुड़ी,सबखौं मुलक दिखात।
चमचा जिनखौं कात हैं,टाँड़ी से उतरात।।
***
-सुभाष सिंघई , जतारा
6
गुड़ी-मुड़ी मारैं सुड़ी, सोचत मूड़ खुजाय।
हमइ घाइं है आदमी, खाय-पिये अरु जाय।।
***
-संजय श्रीवास्तव, मवई
7
सुड़ी चाँवरन में भई, परै लिंजूटा दार ।
देख तिलूला नाज में, दय घामैं में डार ।।
***
– डॉ.बी.एस.रिछारिया, छतरपुर
8
सुड़ी चून में, पर गईं चल्ली सैं लो छान ।
मेंदा आटे में परीं,लगा लेव तुम ग्यान ।।
***
-शोभाराम दाँगी इन्दु, नदनवारा
9
इल्ली नें खा लय चना,सरसों मैंटी माउ।
पिसिया में भये तितुला,बोले मूरत दाउ।।
***
– मूरत सिंह यादव, दतिया
10
सुड़ी परे चाॅंवर कनक,स्वाद हीन हो जात।
जैसें बूढ़े आदमी, सबखों बुरय बसात।।
***
-भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”

11
सुडी देखकें नाजमें,परगइ गुडी लिलार।
अब खाबेको नारहो,भव सबरो बेकार।
***
– एम.एल.अहिरवार ‘त्यागी’, खरगापुर

12
उल्टी चली बयार अब,दूषित भयो समाज।
चाल चलन बिगरन लगे,सुड़ी लगै ज्यों नाज।
***
-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
13
खेती-पाती है नहीं,करन खान काॅं जाय।
सुड़ी दार उर चून खा,बैठी मजा उड़ाय।।
***
आशाराम वर्मा “नादान” पृथ्वीपुर
14
सुडी़ परै नइँ नाज में,कर रय खूब विचार।
ऊखों बंडा में धरें,खोजत हैं उपचार।।
***
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.
15
मुलक दिनन ना सैंतियौ, भइया कौनउँ नाज।
अगर सुडी हो जैय तौ,कर्री लग है खाज।।
***
-रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां
16
खाना में निकरी सुड़ी,बिगरौ सबरौ स्वाद।
उठा लट्ठ दव मूँड़ में, बड़ गई भौतइँ व्याद।।
***
– अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी
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