*”बीजणा” v/s “बाजणा”* आभूषण
“बीजणा” v/s “बाजणा”
आज तक कुछ लोगो को भ्रम हैं कि आभूषण रूपी शब्द बीजणा और बाजणा में कौनसा सही शब्द हैं। आप लोगो की जानकारी के लिए बता दूं कि बीजणा एवं बाजणा दोनों ही सही शब्द हैं और ये टूम-गहने दोनों अलग अलग धातु से निर्मित होते है।
बीजणा एक सोने से निर्मित आभूषण हैं जिसकी कीमत आज से 70-80 साल पहले लाखो में होती थी जो सिर के ऊपर पहना जाता हैं। जबकि बाजणा एक चांदी से निर्मित गहना हैं जिसकी कीमत उस समय हजारों में होती थी जो तागड़ी की जगह पहना जाता हैं। एक बीजणा और होता हैं जो लकड़ी से बना होता हैं जो गर्मी के समय हवा करने के काम आता हैं। दूसरी तरफ ऐसे ही एक नौ भलक्या की नाथ भी होती थी जो अब प्रायः लुप्त हो चुकी हैं।
बीजणे नामक गहने के ऊपर उसकी कीमत को दर्शाता एक-दो हरियाणवीं गीत भी हैं।
लाख टके का हे! माँ मेरी बीजणा, मेरे ससुर नै दियो घड़वाये।
ऐसी ही निम्नलिखित पं लख्मीचंद की एक हरियाणवीं रचना जो इसके साक्ष्य के रूप में प्रामाणिक हैं।
लाख टके का, हे! मां मेरी बीजणा री, अरे कोये धरया पुराणा होए।
खड़ी अकेली भीझू, हे! मां मेरी बाग म्हं री।।टेक।।
किसा छैल घाबरू हे! मां मेरी बाग म्ह री, जणु लखमीचन्द सी उणिहार,
खड़ी ऐ! अकेली भीझू हे! मां मेरी बाग म्ह री ।।
नोट:- दोनों के अंतर को दर्शाते संलग्न चित्र zoom करके अवश्य देखे।
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संदीप कौशिक@हरियाणवीं साहित्य संग्रह।