बिलखती भूख की किलकारियाँ हैं
बिलखती भूख की किलकारियाँ हैं
यही इस दौर की सच्चाइयाँ हैं
अहम मानव का इतना बढ़ गया है
कि संकट में अनेकों जातियाँ हैं
हिमायत की जिन्होंने सच की यारो
मिलीं उनको सदा ही लाठियाँ हैं
यही सच नक्सली इस सभ्यता का
कि बीहड़ वन हैं, गहरी खाइयाँ हैं
ग़रीबी भुखमरी के दृश्य देखो
कि पत्थर तोड़े, नंगी छातियाँ हैं