जालिम
बिन खता के कैद में था,
जालिम कोविड ए दौर में।
पड़ा रहता मैं पलंग पर,
रोगी था बिन मर्ज के।
बज्ज निकम्मे जितने बच्चे,
आला तालिब सब हुए।
बिन परीक्षा पास हो गए,
अव्वल दर्जे में सभी।
बेमुरव्वत उन दिनों थे
अपने अथवा गैर हों।
मियां बीबी में बना था,
दो दो गज का फांसला।
कागज़ कलम स्याही बनकर,
मोबाइल था हमसफ़र।
एक फायदा हुआ मुझको,
मैं भी शायर बन गया।
-सतीश सृजन