बिंदी
बिंदी
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सजनी माथे पर जब धारे,
पिय प्रेम और श्रृंगार बने।
रंगरेज बिखेरे कपड़े पर,
चुनर का रूप संवार बने।
अति सूक्ष्म रूप औकात वृहद,
समुचित स्थल पर भार बने।
लाली काली नीली पीली,
‘बिंदी’ जीवन का सार बने।
शब्दों का रुख ही बदल जाता,
जब भी बिंदी का कोप बने।
भाषा परिभासित न होये,
यदि वाक्य में बिंदी लोप बने।
अक्षर हो शब्द हो वाक्य हो या,
शोभित न हो जब बिंदि छने।
अतिसय बिंदी प्रयोग में हो,
शब्दों का शब्द से रार बने।
नुक्ता बिंदी अथवा दशमल
हो जगह सही तो मान बने।
अनुचित स्थान ग्रहण करे तो,
अंको का बहु अपमान बने।
नुक्ता हट जाए खुदा हो जुदा,
लग जाये खुदा का मुकाम बने।
बिंदी बिन सून साहित्य सकल,
यही बिंदी ही पूर्ण विराम बने।
दो आँख के मध्य है एक बिंदी,
जो अनहद धुन का पसार बने।
उजियारा नाद बजाय सदा,
हरि राम नाम विस्तार बने।
जिसे सतगुरु युक्ति सीखा दे ‘सृजन’
बिंदी ब्रह्मांड विस्तार बने।
पहुँचे सतलोक मिले बिंदी,
भटके जग बिंदी बिसार बने।