*बाहर से तो फटेहाल हैं नेताजी (हिंदी गजल/ गीतिका)*
बाहर से तो फटेहाल हैं नेताजी (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
बाहर से तो फटेहाल हैं नेताजी
अंदर धन से भरे थाल हैं नेताजी
2
श्वेत वस्त्र खादी के तो मजबूरी हैं
भीतर से रंगीन ख्याल हैं नेताजी
3
पूॅंजीपतियों के दलाल हैं नेताजी
खाते उनका रोज माल हैं नेताजी
4
तनी हुई जब तलवारें मजदूरों की
मिल-मालिक के लिए ढाल हैं नेताजी
5
कितने भी कंकड़-पत्थर मारो इनको
गेंडे की-सी हुए खाल हैं नेताजी
6
धरती पर हम स्वर्गलोक को लाऍंगे
रोज बजाते सिर्फ गाल हैं नेताजी
7
जितने चाहे वादे इन से करवा लो
टपक रही पद हेतु राल हैं नेताजी
8
जब चाहे दंगा-फसाद करवा देंगे
खुद में ही भीषण बवाल हैं नेताजी
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451