बावरी
माँ, जो खुद से ज्यादा अपने
बच्चो का ख्याल जो रखती ।
खुद के पेट की चिंता करे बगैर,
परिवार के हर सदस्य को
खाना खाने के लिए टोकती है ।
हा शायद वो “बावरी” ही है ।।
क्योंकि वो खुद से ज्यादा
दुसरो का ख्याल जो रखती है ।।
बच्चो की जिद पूरी करने के लिए,
कभी अपनी पल्लू में, कभी चावल के
डिब्बे में ।
रुपये छुपाकर रखती है ।
अपनी जरुरत के लिए नही
बल्कि अच्छे समय को बुरे समय
के लिए बचाकर रखती है ।
वो “बावरी” ही है ।
जो अपनी भविष्य की चिंता
किये बगैर,
बच्चो के भविष्य संवारने
के लिए, अपनी सारी
जमापूंजी न्यौछावर कर देती है ।
हा वो अपने बच्चो के प्रेम में
“बावरी” ही तो है ।।
:- गोविन्द उईके