बावरा सा मन
बावरा सा मन
हे मेरे शांत सरोवर मन ।
मेरे दिल में है एक उलझन ।
कैसे बताऊ तुम्हे ?
बताऊ या न बताऊ !
डर लगता है कही ।
मन और दिल के बीच ।
कहि हो न जाये अनबन ।
दरअसल बात ये है ।
जब से इन नैनो से ।
हुस्न -ए- दीदार हुआ है ।
बड़ गई मेरे दिल की धड़कन ।
मन को कैसे समझाऊ ।
वो तो ठहरा भोला भाला सा,
मासूम सा, कोरा कागज सा है ।
जिस पर,
कोई भी रंग डालो
उसमे ही रंग जाएगा ।
आखिर दिल और मन ।
एक ही तराजू में तूल गए ।
आपस मे दोनों घुल मिल गए ।
दोनों ने आखिर तय किया ।
“इश्क” है तो होने दो ।
जंग थोड़े ही है ।
सारी दुनिया इसी रंग में भंग है ।
कैसे संभालता इसे तू “गौतम”
क्योंकि ये ठहरा “बावरा सा मन” है ।
© गोविन्द उईके