बाल श्रम संवैधानिक अपराध
बाल श्रम संवैधानिक अपराध
समाज में बाल श्रमिक मान्य नहीं है । बाल श्रम अपराध की श्रेणी में आता हैं । बालक जब अपने बौद्धिक , शारीरिक विकास के क्रम में होते हैं , उनका बचपन , अल्हड़पन , शिक्षा के प्रति रुचि माता -पिता के स्नेह में वृद्धि करता है । बच्चों का मस्तिष्क नित नए विकास से चकित होता है ,व उनमें कौतूहल भरता है ।
बालकों का भविष्य अर्थ की आवश्यकता निर्धारित नहीं करती अपितु , मेधावी बालक अपना भविष्य, अपनी राह स्वयं चुनता है , व देश की विकास प्रक्रिया मे गौरव पूर्ण योगदान करता है ।
जब बालकों की रुचि के साथ माता -पिता का स्वार्थ उनके विकास को अवरुद्ध करता है , तब बालश्रमिक पैदा होते हैं । माता -पिता का कलह , कुसंग , बुरी आदते गरीबी में वृद्धि करती हैं । आर्थिक अभाव बालकों को बाल श्रम हेतु प्रेरित करता है ।
जब बौद्धिक विकास की दिशा शैक्षिक न होकर व्यावसायिक हो जाती है , तब : व्यावसायिक बौद्धिक विकास समस्त क्लेशों , बुराइयों को जन्म देता है , उन्हें आपराधिक गतिविधियों के लिए प्रेरित करता है । मस्तिष्क की उर्वरता उन्हें जीने नहीं देती , किन्तु श्रमिक- जीवन उनकी आजीविका का साधन अवश्य बनता है । यह बालकों का अबोध बाल पन , उनकी मधुर वाणी , हृदय आसक्त करने वाले नैसर्गिक अभिनय व सीखने की क्षमता को प्रताड़णा द्वारा कुंठित करता है ।
बचपन जो माता -पिता के साये मे निर्भय , निसंकोच होता है , संदेह के वातावरण में भय व संकोच से जीने के लिए मजबूर होता है , यह अत्यंत दुखद स्थिति है ।
बालक जब किस्से -कहानियों द्वारा अपनी कोमल भावनाओं का विकास कर रहा होता है , माता -पिता गुरु स्वरूप होकर उसका मार्गदर्शन करते हैं , शिक्षक शिक्षा के माध्यम से सच -झूठ को पहचानना सिखाते हैं ।उन्हें यथार्थ से परिचित कराते हैं , तब उनकी मेधा समाज में सम्मान का पात्र होती है । वे योग्यता की सीढ़ी चढ़ते है , किन्तु जब उनकी जिज्ञासा शिक्षा से हट कर व्यावसायिक होती है तब हर पल उनकी जिज्ञासा पर कुठारघात होता है । उनका बचपन घुट -घुट कर सौ मौत मरता है ।
संविधान मे बाल श्रमिकों पर हो रहे अत्याचार , अनाचार , यौनाचार के कारण बाल श्रम को असंवैधानिक कहा गया है। यह अपराध की श्रेणी में आता है व दंडनीय अपराध है ।
बाल श्रम बालकों का भावनात्मक , शारीरिक , आर्थिक शोषण है । भविष्य मे गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले श्रमिकों की प्रथम सीढ़ी है, व बाल अपराध को आजीविका का साधन बनाने वाले बच्चों की प्रथम पाठशाला है ।
शिक्षा न केवल समस्त क्लेशों का अंत करती है बल्कि , आर्थिक , सामाजिक रूप से सशक्त बनाती है ।
शिक्षा बालकों का मौलिक अधिकार है , इससे उन्हें वंचित करना संज्ञेय अपराध होना चाहिए ।
बालकों का बचपन विध्यालय के प्रांगण में पुस्तकों , कलम से निखारना चाहिए न कि , दुकानों , बाज़ारों खेतों -खलिहानों में , कारखानों में असमय समाप्त होना चाहिए । यह स्थिति बालकों के भविष्य को अंधकार मय बनाती है ।
अत :बाल श्रमिकों कि शिक्षा में अपना योगदान करें न कि, उनके श्रम का योगदान अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में करें ।
शिक्षा का दान देश की भावी पीढ़ी हमेशा याद रखेगी , अत :ध्यान रखें समाज को सुदृढ़ बनाने में आपका योगदान अभूत पूर्व , अविस्मरणीय हो सकता है ।
बच्चों को शिक्षित बनाएँ -सुखी जीवन अपनाएं ।
28-10-2018 डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ परामर्श दाता
जिला चिकित्सालय -सीतापुर