बाल झड़ गए पढ़ते पढ़ते बढ़
बाल झड़ गए पढ़ते पढ़ते बढ़ रही और प्रेसानी है
हमे सब लोग निक्कमे समझने लगे है
क्या खुदा यही लिखी तूने मेरी कहानी है
सरकार सो गई नही सुनती नही देखती कोई कहानी है
वेकेंसी कही आती नही वोट के समय तो ऐसे कहते
लगता है नौकरी इनकी नौकरानी है
हम देंगे रोज गार यही झूठ सुनना इनकी जुबानी है
बाल झड़ गए पढ़ते पढ़ते बढ़ रहे और सारी प्रेसानी है