बारिश
जब भी बारिश आती है।
किसी को झूमने को मजबूर कर जाती है,
किसी में घूमने की ललक जगा जाती है।
खुशमिजाज गाना गाने लगते हैं,
उदास भी मुस्कुराने लगते हैं।
जब भी बारिश आती है।
सूखे पत्तों में खिलखिलाहट आ जाती है,
पशु पक्षियों की पोबारह हो जाती है।
पेड़ पौधों की तबियत भी प्रसन्न हो जाती है,
जब भी बारिश आती है।
आलसी का आलस भी घबराने लगता है वो भी मौसम की ऊर्जा को अपनाने लगता है,
जो दूर हैं घर से बूंदों के साथ अपनों की यादों में खो जाते हैं,
जो साथ हैं इस मौसम को उत्सव की तरह मानतें हैं।
जब भी बारिश आती है बहार और खुशियाँ लाती है।
पर आजकल बारिश रुक रुक कर आती है।
ऐसा कर के वो हमको खुद का दर्द बताती है,
बचालो मुझ्को अपने तकनीकि और आधुनिक ख्यालों से, बढ़ता तापमान,बदलती जलवायु जैसे बवालों से ,
ये कहती जाती है,
ये कहती जाती है।
है मनुष्य इसको बचा ये अपनी ही साथी है,
नहीं तो कुछ समय बाद कहेगा,
आजकल बारिश ही नहीं आती है,
बारिश ही नहीं आती है।