बाबूजी की प्यारी साइकिल
सुंदर सहज सँवारी साइकिल,
जैसे राजकुमारी साइकिल,
अबतक भूल नही पाया हूँ,
बाबूजी की प्यारी साइकिल ।।
हवा जहाँ से भरते थे ,वो कवर लगाकर रख्खा है ।
पैडल पे भी देखो अबतक रबर लगाकर रख्खा है ।
ब्रेक इतने मजबूत लगे थे,मगर लगाया कभी नही,
बात हवा से कर सकती थी,मगर भगाया कभी नही,
उसके आगे फीकी लगती दुनियाँ भर की सारी साइकिल ,
अबतक भूल नही पाया हूँ,
बाबूजी की प्यारी साइकिल ।।
हाथों में लेकर रुमाल वो,उसको झारा करते थे,
साफ-सूफ कर तेल लगाकर,उसे निहारा करते थे,
इससे पहले मुझे बुलाकर,अक्सर ये सलझाते थे,
सूक्ष्म तरीके साफ सफाई के वो हमें बताते थे,
कहता आप खरीदो दूजी,ये बन जाय हमारी साइकिल,
अबतक भूल नही पाया हूँ,
बाबूजी की प्यारी साइकिल ।।
अब भी प्यार उन्हें साइकिल से,
लेकिन नही चलाते साइकिल,
हमको ना छूने देते थे,अब बच्चे दौड़ाते साइकिल,
अभी कभी भी खेत देखने,ले करके जब जाते साइकिल,
पहले सबको डाट लगाते,फिर खुद ही चमकाते साइकिल,
गोल गुलाबी गद्दी उसकी,काली नीली ,धारी साइकिल,
अबतक भूल नही पाया हूँ,
बाबूजी की प्यारी साइकिल ।।